नई दिल्ली। सरकार कर्ज के बोझ में दबी वोडाफोन आइडिया को बीएसएनएल और एमटीएनएल के साथ विलय करने के पक्ष में नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से ये खबर दी है। दरअसल कुछ समय पहले कुमार मंगलम बिड़ला ने कंपनी में अपनी हिस्सेदारी को सरकार सहित किसी को भी देने की इच्छा जताई थी। सूत्रों के मुताबिक एक कर्ज में फंसी कंपनी को ऐसी सरकारी कंपनी के साथ विलय न करने की ढेर सारी वजहें मौजूद हैं, जो खुद ही सरकार की सहायता से चल रही हों। रिपोर्ट के मुताबिक सूत्र ने कहा कि घाटे से निकालने के लिये राष्ट्रीयकरण करना सही नहीं है।
सरकारी कंपनी के साथ विलय की बाते तब उठीं थी जब Deutsche बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में ऐसी संभावनाओं का जिक्र करते हुए लिखा था कि फिलहाल वोडाफोन आइडिया को वापस खड़ा करने का सबसे बढ़िया रास्ता ये है कि सरकार इसके कर्ज को इक्विटी में बदल दे, और इसका विलय सरकारी कंपनी के साथ करे, जिसके बाद इसकी रिकवरी पर आगे बढ़ा जा सकता है। हालांकि अब सरकारी सूत्रों की माने तो सरकार ऐसे किसी विचार के पक्ष में नहीं है।
वोडाफोन आइडिया भारत की तीसरी सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी है। इस समय देश में इसके 27 करोड़ यूजर है। वोडाफोन आइडिया पर सरकार का ₹96,300 करोड़ का कर्ज है। इसके साथ ही एजीआर ड्यूज के रूप में कंपनी को 61,000 करोड़ रुपये चुकाने हैं। वोडाफोन आइडिया पर इस समय बैंकों का 23 हजार करोड़ रुपये का बकाया है। वोडाफोन आइडिया का नुकसान ₹7000 करोड़ को पार कर रहा है।
दूसरी तरफ बीएसएनएल और एमटीएनएल की खुद की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है। 2019 में ही सरकारी कंपनियों को खुद को चलाये रखने के लिये बड़े आर्थिक पैकेज की जरूरत पड़ी थी। 5 अगस्त को राज्य सभा में दिये गये एक बयान के मुताबिक वित्त वर्ष 2021 के अंत तक बीएसएनएल पर 81156 करोड़ रुपये और एमटीएनएल पर 29391 करोड़ रुपये का कर्ज है।
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