नई दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को कहा कि जल्दी खराब होने वाले सामानों का मुद्रास्फीति पर दबाव पड़ रहा है और सरकार बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए अल्प तथा मध्यम अवधि के उपाय कर रही है। थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति सितंबर में सात महीने के उच्च स्तर 1.32 प्रतिशत पर पहुंच गई। वहीं खुदरा महंगाई दर खाद्य वस्तुओं खासकर सब्जियों के दाम में तेजी से आठ महीने के उच्च स्तर 7.34 प्रतिशत पहुंच गई।
सीतारमण ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि कुछ जिलों में बाढ़ के कारण मौसमी उत्पादों की कीमतों में तेजी आई है। सरकार उनके बेहतर तरीके से रखरखाव, लंबे समय तक उन्हें खाने लायक बनाये रखने और प्याज तथा आलू जैसे फसलों के लिए ऐसी भंडारण व्यवस्था उपलब्ध करा रही है, जिस पर मौसम का कोई असर नहीं पड़े। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थों (फल और सब्जी) के दाम बढ़े हैं और इसका प्रमुख कारण कुछ जिलों मे बाढ़ का आना है.सरकार अल्पकालिक और मध्यम अवधि दोनों उपायों पर काम कर रही है।
अल्प अवधि और मध्यम अवधि के लिए जहां भी आयात की जरूरत हुई, मंजूरी दी गई, पर्याप्त निवेश आकर्षित किय जा रहे हैं और कृषि संबंधी ढांचागत सुविधा के लिए प्रोत्साहन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी बुधवार को देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति पर अपनी एक रिपोर्ट में मुद्रास्फीति के दबाव की बात स्वीकार की। इसमें कहा गया है कि इससे आर्थिक पुनरूद्धार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने को लेकर जोखिम बना हुआ है।
खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर में बढ़कर 7.61 प्रतिशत पर पहुंची
खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के कारण अक्टूबर में खुदरा मुद्रास्फीति 7.61 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह रिजर्व बैंक के संतोषजनक दायरे से ऊपर है। सरकार द्वारा जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के आंकड़ों के अनुसार, इससे एक माह पहले सितंबर 2020 में खुदरा मुद्रास्फीति 7.27 प्रतिशत थी। वहीं एक साल पहले अक्टूबर 2019 में यह 4.62 प्रतिशत रही थी।
सामान्य मुद्रास्फीति में वृद्धि मुख्य रूप से खाद्य कीमतों में वृद्धि के कारण हुई। आंकड़ों के अनुसार, उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) की वृद्धि सितंबर के 10.68 प्रतिशत से बढ़कर अक्टूबर में 11.07 प्रतिशत पर पहुंच गई।