नई दिल्ली। चौथी वार्षिक रोजगार एवं बेरोजगारी रिपोर्ट (2013-14) में देश में रोजगार के हालात पर उपलब्ध ताजा आंकड़े प्रदर्शित किए गए हैं। इसके मुताबिक देश में 16.5 फीसदी से अधिक मजदूरों को नियमित वेतन या पारिश्रमिक नहीं मिलता।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक चार में से तीन परिवार (78 प्रतिशत) ऐसे रहे, जिनमें एक भी सदस्य ऐसा नहीं था, जिसे नियमित तौर पर वेतन मिला हो। दूसरी ओर देश के कुल श्रमिकों में अनियमित तौर पर मजदूरी करने वाले लोगों की संख्या (30.9 फीसदी) अच्छी खासी है और यह संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। नियमित वेतनभोगियों की जगह ठेके पर या अनियमित तौर पर काम करने वाले कामगारों की संख्या में इजाफा हो रहा है।
1999 से 2010 के बीच के एक दशक से अधिक समय में संगठित रोजगार के क्षेत्र में ठेके पर काम करने वाले कामगार 10.5 फीसदी से बढ़कर 25.6 फीसदी हो गए, जबकि सीधे तौर पर नौकरी पाने वाले लोगों की संख्या गिरकर 68.3 फीसदी से 52.4 फीसदी हो गई। देश में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था सकल घरेलू उत्पाद में 50 फीसदी योगदान देती है और रोजगार का सृजन भी करती है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के तहत देश के कुल कार्यबल का 90 फीसदी रोजगार पाता है।
देश का कुल अनुमानित कार्यबल 47.5 करोड़ है, जिसमें से 40 करोड़ कामगारों को श्रम कानूनों के तहत मामूली सुरक्षा मिलती है या बिल्कुल नहीं मिलती। यह आबादी अमेरिका की कुल आबादी से भी अधिक है। देश की सत्ता में आने वाली सरकारें रोजगार सृजन का वादा तो करती हैं, लेकिन वास्तविकता उसके बिल्कुल उलट है। लगातार रोजगार सृजन घट रहा है और सुरक्षा भी कम होती जा रही है। 1999-2000 से 2009-2010 के दशक में जहां सकल घरेलू उत्पाद औसतन 7.52 फीसदी की तेजी से बढ़ा, वहीं रोजगार सृजन की वृद्धि दर 1.5 फीसदी रही है। यह 1972-73 के बाद के चार दशकों में सबसे कम है।