नई दिल्ली। देश की सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी में वित्त वर्ष 2020- 21 के दौरान पांच प्रतिशत की गिरावट आने से भारतीय उद्योग जगत के राजस्व में 15 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है और यह स्थिति देश के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिये ‘‘अस्तित्व का संकट’’ खड़ा कर सकती है। सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। इसमें कहा गया है कि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय ने जो नीतिगत कदम उठाये हैं उनसे भी इस मामले में मामूली सहारे की उम्मीद है क्योंकि इन उपायों से मांग को तेजी से नहीं बढ़ाया जा सकता है। मांग का बढ़ना छोटे व्यवसायों के लिये बहुत जरूरी है।
घरेलू रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की शोध शाखा की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसएमई क्षेत्र को इस स्थिति में राजस्व में 21 प्रतिशत तक की तेज गिरावट का सामाना करना पड़ सकता है। जबकि ऐसे में उसका परिचालन मुनाफा कम होकर मार्जिन 4 से 5 प्रतिशत रह जायेगा। एजेंसी को देश की जीडीपी में पांच प्रतिशत तक गिरावट आने का अनुमान है। कोरोना वायरस के प्रभाव की वजह से यह गिरावट आने का अनुमान है। कोरोना वायरस की वजह से देशभर में करीब तीन माह का लॉकडाउन लगा है जिसे खोलने के लिये बाद में कुछ कदम उठाये गये। केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक ने एमएसएमई क्षेत्र की मदद के लिये कुछ उपायों की घोषणा की है।
एमएसएमई क्षेत्र को तीन लाख करोड़ रुपये तक का गारंटी मुक्त कर्ज उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कमोडिटी के घटे दाम से लाभ उठाया जा सकता है लेकिन अर्थव्यवस्था में कमजोर मांग के चलते लघु व्यवसाय वर्ग इसका लाभ नहीं उठा पायेगा। सबसे बड़ा झटका सूक्ष्म उद्यमों को लगेगा। एमएसएमई क्षेत्र के कुल कर्ज में 32 प्रतिशत कर्ज इन इकाइयों का है। जबकि ये इकाइयां राजस्व वृद्धि, परिचालन मुनाफा मार्जिन और कार्यशील पूंजी के मामले में गहरा दबाव झेल रही हैं।