नई दिल्ली। सरकार ने कहा है कि भारत-मॉरीशस के बीच कर संधि मौजूदा पी-नोट्स होल्डिंग्स पर लागू नहीं होगी। मॉरीशस से भारत में किए जाने वाले निवेश पर पूंजीगत लाभ कर लगाने के मकसद से इस संधि में संशोधन के समझौते पर कल हस्ताक्षर किए गए। राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने इस संधि को कालाधन तथा कर चोरी के खिलाफ सबसे बड़ा करार बताया। अधिया ने कहा कि नई संधि के बाद अब भारत के सिंगापुर के साथ कर समझौते में इसी तरह के संशोधन की कवायद शुरू होगी। वहीं यदि साइप्रस इसी तरह के बदलाव के लिए तैयार नहीं होता है, तो भारत के पास उससे संधि समाप्त करने का विकल्प होगा।
अप्रैल-दिसंबर, 2015 में देश में आए 29.4 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में से 17 अरब डॉलर मॉरीशस और सिंगापुर से आए। अधिया ने कहा कि निवेश प्रवाह की दृष्टि से साइप्रस हमारे लिए अधिक महत्वपूर्ण देश नहीं है। भारत उसके साथ इस संधि को नए सिरे से तैयार करने पर बातचीत कर रहा है। यदि वे अपने रुख में बदलाव नहीं करते हैं, तो हमारे पास संधि रद्द करने का विकल्प भी होगा। हमारी बातचीत चल रही है।
उन्होंने कहा कि मॉरीशस के साथ संशोधित संधि से पी-नोट्स के जरिये मौजूदा निवेश पर कोई असर नहीं होगा। एक अप्रैल, 2017 से मॉरीशस के रास्ते धन भारत भेजने वाली कंपनियों को 24 महीने के बदलाव वाले समय के दौरान लागू दर का आधा लघु अवधि का पूंजीगत लाभ कर अदा करना होगा। ऐसे सौदों पर पूंजीगत लाभ कर की पूर्ण दर एक अप्रैल, 2019 से लागू होगी। यह दर फिलहाल 15 फीसदी है। राजस्व सचिव ने कहा कि मॉरीशस के साथ दोहरा कराधान बचाव संधि (डीटीएसी) में संशोधन के तहत पी-नोट के लिए अलग से कोई नियम नहीं है। इस संशोधित संधि से भारत को 31 मार्च 2017 के बाद मॉरीशस के रास्ते खरीदे गए भारतीय कंपनियों के शेयरों पर पूंजी लाभ कर लगाने का अधिकार मिल गया है। उन्होंने कहा कि डीटीएए में संशोधन मॉरीशस के जरिए आ रही कंपनियों के बारे में है। उन्होंने कहा, पी-नोट अलग मामला है। यह संधि से जुड़ा नहीं है।