जोरहाट (असम): दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी चाय शोध संस्था ‘टोकलई चाय शोध संस्थान’ को इस समय गंभीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उसका काम प्रभावित हुआ है। हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि हालात ठीक करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। कर्मचारियों का आरोप है कि उन्हें वर्षों से वेतन के कई घटकों जैसे बीमा और भविष्य निधि का लाभ नहीं मिल रहा है। वे सुनिश्चित धन जारी करने, वैज्ञानिकों की भर्ती, शोध कार्यों में सुविधा और अन्य जरूरी उपाय करने की मांग कर रहे हैं।
उनका कहना है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को भी उनका पूरा बकाया अभी तक नहीं मिला है। संस्थान के निदेशक ए के बरूआ ने कहा संस्थान में वित्तीय परेशानी 2012-2017 के दौरान शुरू हुई। उन्होंने बताया कि इस समय बाहरी स्रोतों से वित्त पोषित कुछ परियोजनाएं चल रही हैं, लेकिन मुख्य शोध कार्य प्रभावित है। भारत में टोकलई एक्सपेरिमेंटल स्टेशन की स्थापना के साथ चाय पर योजनाबद्ध शोध कार्य 1911 में शुरू हुआ। इसका नाम 2014 में बदलकर टोकलई चाय शोध संस्थान (टीटीआरआई) कर दिया गया।
भारतीय चाय बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में चाय का कुल उत्पादन करीब 137 करोड़ किलोग्राम है। इसमें सिर्फ असम की 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है। टोकलई टीआरआई के कुल बजट का 64 प्रतिशत चाय उद्योग से आता है। दस शाखाओं के साथ संस्थान असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में शोध और सलाह सेवाएं मुहैया कराता है।