नई दिल्ली। देश का विदेशी मुद्रा भंडार 13 नवंबर को समाप्त सप्ताह में 4.277 अरब डॉलर की जोरदार वृद्धि के साथ 572.771 अरब डॉलर के नये रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इससे पिछले छह नवंबर को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 7.779 अरब डॉलर की भारी वृद्धि के साथ 568.494 अरब डॉलर हो गया था।
क्यों बढ़ा विदेशी मुद्रा भंडार
समीक्षाधीन अवधि में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने की बड़ी वजह विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (एफसीए) का बढ़ना है। ये परिसंपत्तियां कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार समीक्षावधि में एफसीए 5.526 अरब डॉलर बढ़कर 530.268 अरब डॉलर हो गया। एफसीए को दर्शाया डॉलर में जाता है, लेकिन इसमें यूरो, पौंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्राएं भी शामिल होती है। समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान देश का स्वर्ण भंडार का मूल्य 1.233 अरब डॉलर घटकर 36.354 अरब डॉलर रह गया। देश को अंतरराष्ट्रीय मु्द्रा कोष (आईएमएफ) में मिला विशेष आहरण अधिकार 1.488 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा। वहीं, समीक्षावधि में देश का आईएमएफ के पास जमा मुद्रा भंडार 1.5 करोड़ डॉलर घटकर 4.661 अरब डॉलर रह गया।
एक साल में कितना बढ़ा भंडार
आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 124 अरब डॉलर से ज्यादा बढ़ गया है। वहीं इस वित्त वर्ष में अब तक रिजर्व में करीब 95 अरब की बढ़त रही। फॉरेन करंसी एसेट भी पिछले एक साल के दौरान 113 अरब डॉलर और वित्त वर्ष में अबतक 88 अरब डॉलर बढ़ गया है।
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़त का फायदा
किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी मुद्रा भंडार काफी अहम होता है। साल 1991 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 1.1 अरब डॉलर के स्तर पर आ गया था, उस वक्त ये रकम 2 से 3 हफ्ते के आयात बिल के लिए भी पर्याप्त नहीं थी। फिलहाल भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब डेढ़ साल के आयात के लिए पर्याप्त है। साल 2004 में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार ने 100 अरब डॉलर की सीमा पार की थी, वहीं जून 2020 के पहले हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 500 अरब डॉलर के स्तर को पार कर गया। जून के बाद से विदेशी मुद्रा भंडार लगातार 500 अरब डॉलर के स्तर से ऊपर ही बना हुआ है।