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So Confusing: भारत में घटी FMCG प्रोडक्ट की खपत, लेकिन कंपनियों ने सितंबर तिमाही में दर्ज की 12.6% की ग्रोथ

नील्सन आईक्यू की रिटेल इंटेलिजेंस टीम की रिपोर्ट के अनुसार, इसके अलावा जिंसों की ऊंची कीमत जैसे वृहत आर्थिक कारकों ने तिमाही के दौरान खपत वृद्धि को प्रभावित किया।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published : November 30, 2021 16:17 IST
भारत में घटी FMCG...
Photo:FILE

भारत में घटी FMCG प्रोडक्ट की खपत, लेकिन कंपनियों ने सितंबर तिमाही में दर्ज की 12.6% की ग्रोथ

Highlights

  • एफएमसीजी के उत्पादों की इस साल सितंबर तिमाही में खपत कम हुई है
  • महानगरों में खपत में तेजी रही, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में कमी दर्ज की गयी
  • जिंसों की ऊंची कीमत जैसे आर्थिक कारकों ने तिमाही के दौरान खपत प्रभावित

नयी दिल्ली। देश में दैनिक उपयोग के सामान बनाने वाली वाली कंपनियों (एफएमसीजी) के उत्पादों की इस साल सितंबर तिमाही में खपत कम हुई है। हालांकि, उन्होंने मूल्य के हिसाब से 12.6 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की है बाजार के बारे में सूचना देने वाली कंपनी नील्सन की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। जहां महानगरों में खपत में तेजी रही, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में कमी दर्ज की गयी। पूर्व में महामारी की पहली लहर के प्रभाव से उबरने के बाद वृद्धि के संदर्भ में ग्रामीण क्षेत्र का प्रदर्शन शहरी क्षेत्रों से अच्छा था। 

नील्सन आईक्यू की रिटेल इंटेलिजेंस टीम की रिपोर्ट के अनुसार, इसके अलावा जिंसों की ऊंची कीमत जैसे वृहत आर्थिक कारकों ने तिमाही के दौरान खपत वृद्धि को प्रभावित किया। इसमें कहा गया है, ‘‘कुल मिलाकर भारतीय एफएमसीजी उद्योग ने सितंबर तिमाही में कीमत आधारित उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की। इसका मुख्य कारण जिंसों, कच्चे माल और ईंधन के दाम में तेजी है। ईंधन के दाम बढ़ने से परिवहन लागत में वृद्धि हुई है। इससे दहाई अंक में वृद्धि हुई लेकिन खपत (मात्रा) वृद्धि में गिरावट दर्ज की गयी।’’ 

कीमत आधारित वृद्धि की अगुवाई मुख्य रूप से खाने-पाने की सामान बनाने वाली कंपनियों ने की। इनका एफएमसीजी उद्योग में योगदान 59 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुसार, छोटी कंपनियां इस दौरान ज्यादा प्रभावित हुईं जबकि बड़ी कंपनियां बेहतर स्थिति में रहीं। सितंबर तिमाही में सालाना आधार पर एफएमसीजी क्षेत्र में कुल मूल्य वृद्धि में 76 प्रतिशत योगदान बड़ी कंपनियों का रह जबकि छोटी इकाइयों की हिस्सेदारी केवल दो प्रतिशत रही। शेष योगदान मझोले आकार की कंपनियों का रहा। 

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