नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को अपने फेसबुक पेज पर एक पोस्ट किया है। इसमें उन्होंने एक मीडिया रिपोर्ट में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा लोन राइट-ऑफ करने की खबर का खंडन किया है। उन्होंने 7 बिंदुओं में इस पोस्ट को लिखा है, जो इस प्रकार हैं:
- एक समाचार पत्र में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा लोन राइट-ऑफ के संबंध में लेख छपा है। तकनीकी रूप से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के दिशा-निर्देशों के अनुसार बैंकों द्वारा राइट-ऑफ का उपयोग किया जाता है। हालांकि, इससे लोन चुकाने में कोई छूट नहीं मिलती है। बैंकों द्वारा ऋण की रिकवरी लगातार जारी है। वास्तव में अधिकांश दिवालिया कंपनियों के डिफॉल्ट प्रबंधन को आईबीसी के तहत हटा दिया गया है।
- जब 2014 में हमारी सरकार बनी तब हमें बैंकिंग क्षेत्र में बड़े पैमाने पर एनपीए की समस्या विरासत में मिली। एनपीए में इस वृद्धि का मुख्य कारण यह है कि 2008 से 2014 के बीच आक्रामक ढंग से ऋण बांटे गए जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का सकल ऋण बहुत तेजी से बढ़ गया। बैंकों का कुल ऋण बकाया, जो मार्च 2008 में 18 लाख करोड़ रुपए था, वह मार्च 2014 तक बढ़कर 52 लाख करोड़ रुपए हो गया।
- सरकार ने तनावग्रस्त संपत्तियों और एनपीए की पारदर्शिता के साथ पहचान करने का निर्णय लिया, जो पर्दे के पीछे छुपे थे। आरबीआई द्वारा 2015 में संपत्ति गुणवत्ता समीक्षा शुरू की गई और इसके बाद बैंकों द्वारा पारदर्शी तरीके से उच्च एनपीए का खुलासा होना शुरू हुआ। मार्च 2014 में बैंकों का एनपीए 2.26 लाख करोड़ रुपए था, जो मार्च 2014 में बढ़कर 8.96 लाख करोड़ रुपए हो गया।
- बगैर जोखिम मूल्याकंन और ऋण निगरानी में लापरवाही के साथ आक्रामक ऋण देने की वजह से विलुप्त डिफॉल्टर्स और तनावग्रस्त परिसंपत्तियों में वृद्धि हुई। इसके अलावा, तनावग्रस्त खातों को ऋण वर्गीकरण में लचीलेपन, एवरग्रीनिंग और अक्सर पुन: पुनर्गठन के माध्यम से एक गैर-एनपीए माना जाता था। इसका मतलब है कि एनपीए को तनावग्रस्त संपत्ति के रूप में पर्दे के पीछे छुपाया गया था। अभी भी कई डिफॉल्ट का खुलासा होना बाकी है।
- आरबीआई के दिशा-निर्देशों और बैंक बोर्ड द्वारा स्वीकृत नीति के तहत, गैर-निष्पादित ऋण, जिनके संबंध में चार वर्ष पूरा होने पर पूर्ण प्रावधान किया जा चुका है, को संबंधित बैंक की बैलेंस शीट से राइट-ऑफ के माध्यम से हटा दिया गया है।
- गैर-निष्पादित संपत्तियों को राइट-ऑफ करना बैंकों द्वारा अपनी बैलेंस शीट को साफ करने और कराधान दक्षता हासिल करने के लिए की जाने वाली एक नियमित प्रक्रिया है। कर लाभ और पूंजी अनुकूलन के लिए ऋण को राइट ऑफ किया जाता है। इस तरह राइट ऑफ किए गए ऋणों के ऋणी आगे भी पुर्नभुगतान के लिए जिम्मेदार बने रहते हैं। देय राशि की वसूली कानूनी प्रक्रिया के तहत चलती रहती है, जिसमें सारफेसी कानून और डीआरटी शामिल हैं।
- एनपीए की रिकवरी के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में बैंकों ने 36,551 करोड़ रुपए की रिकवरी की है। वित्त वर्ष 2017-18 में बैंकों ने कुल 74,562 करोड़ रुपए की रिकवरी की थी। वित्त वर्ष 2018-19 के लिए बैंकों को 1,81,034 करोड़ रुपए की रिकवरी का लक्ष्य दिया गया है। मार्च 2018 की तुलना में जून 2018 के दौरान एनपीए में 21,000 करोड़ रुपए की कमी आई है।