ब्याज दरों को काबू में रखना
आरबीआई गवर्नर की कुर्सी संभालते ही पटेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती ब्याज दरों पर नियंत्रण स्थापित करने की होगी। पटेल को नए तरीके खोजने पड़ेंगे जिससे कि ब्याज दरों पर काबू रखा जा सके। पटेल के लिए ये सबसे मुश्किल काम भी यही है क्योंकि ब्याज दर में कटौती और महंगाई पर काबू करने के दौरान उन्हें केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं को भी ध्यान में रखना होगा।
बैंकों का बढ़ता एनपीए
उर्जित पटेल को राजन की विरासत में बैंकों का भारी भरकम एनपीए भी मिला है। हालांकि इस जंग का बिगुल राजन पहले ही फूंक चुके हैं। लेकिन अभी भी लंबी लड़ाई बाकी है। अपने कार्यकाल में रघुराम राजन ने बैंकिंग सिस्टम में दोबारा जान फूंकने का काम किया, अब उर्जित पटेल को भी इसे आगे ले जाना होगा। इसके अलावा बैंकों की बैलेंस शीट सुधारते हुए बैड डेब्ट को कम करने के लिए पटेल को प्लान तैयार करना होगा।
महंगाई पर काबू पाना
लगातार बढ़ती महंगाई के चलते आम जनता से लेकर सरकार तक आरबीआई की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। उर्जित पर यह जिम्मेदारी इस लिए भी बड़ी है क्योंकि उर्जित उस समिति के अध्यक्ष रहे हैं, जिसने थोक मूल्यों की जगह खुदरा मूल्यों को महंगाई का नया मानक बनाए जाने सहित कई अहम बदलाव किए। वहीं सरकार की भी कोशिश है कि सरकार की कोशिश है कि महंगाई को जनवरी 2017 तक 5 फीसदी के दर पर लाया जाए और इसे 2% से 6% के बीच ही रखा जाए।
मौद्रिक नीति की उलझन
उर्जित के सामने चुनौती सरकार की अपेक्षाओं को साथ रखते हुए देश की अर्थव्यवस्था और मौद्रिक नीति को सही दिशा देना होगा। बतौर नए गर्वनर उर्जित पटेल को अपनी पॉलिसी मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी के फ्रेमवर्क में ही तय करना होगा। जिसमें उन्हें सरकार खासतौर पर वित्त मंत्री की उम्मीदों को भी पूरा करना होगा। हालांकि ऐसा करने में उन्हें दिक्कत नहीं आएगी क्योंकि वो पीएम मोदी के करीबी हैं।
सरकार के साथ पटरी बैठाना
मौजूदा आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन भले ही कई बार सरकार की राय के विरुद्ध जाते दिखे हों, लेकिन ज्यादातर मामलों में उनके संबंध मधुर ही रहे। सिर्फ राजन ही नहीं उनसे पहले के गवर्नर वाईबी रेड्डी और सुब्बाराव ने भी सरकार से समझदारीपूर्वक संबंध बनाए रखे। मौजूदा हालातों के साथ अब इसी परंपरा को निभाने की जिम्मेदारी पटेल पर भी होगी।