नई दिल्ली। भारत की क्रेडिट रेंटिंग में लगातार 12वें साल बदलाव करने से इनकार करते हुए गुरुवार को वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने इसकी रेटिंग को बीबीबी नकारात्मक बनाए रखा है। फिच की यह रेटिंग निवेश श्रेणी में सबसे नीचे है। फिच ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वृहद आर्थिक मोर्चे पर जोखिमों को देखते हुए भारत की रेटिंग में कोई बदलाव नहीं किया है।
फिच ने यह भी कहा है कि भारत के लिए वृहद आर्थिक परिदृश्य बड़ा जोखिम भरा है। फिच ने बयान में कहा कि भारत की वास्तविक आर्थिक वृद्धि के 2017-18 के 6.7 प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 7.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। लेकिन अगले दो वित्त वर्षों में वृद्धि दर घटेगी।
फिच की रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय स्थिति कठिन होने, वित्तीय क्षेत्र की बैलेंसशीट की कमजोरी और अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से वित्त वर्ष 2019-20 और 2020-21 में वृद्धि दर के घटने का जोखिम है। एजेंसी का अनुमान है कि अगले दो वित्त वर्षों में वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत रहेगी। उसने कहा है कि वृहद आर्थिक परिदृश्य बड़ा जोखिम भरा है। कर्ज कारोबार में वृद्धि कम होने से बैंकिंग और गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र के लिए दिक्कतें बढ़ेंगी।
मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस द्वारा 2004 के बाद पहली बार नवंबर 2017 में भारत की रेटिंग को अपग्रेड करने के बाद भारत सरकार ने फिच द्वारा रेटिंग न बदलने का कड़ा विरोध किया था। फिच ने अंतिम बार भारत की रेटिंग को 1 अगस्त 2006 को बीबी+ से बदलकर बीबीबी- किया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी कर्ज जीडीपी के 70 प्रतिशत तक पहुंचने, चालू वित्त वर्ष में पहली छमाही में जीएसटी के कम राजस्व की वजह से राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.3 प्रतिशत लक्ष्य को पूरा करने में मुश्किल और आम चुनाव की वजह से खर्च को नियंत्रित करने में परेशानी की वजह से देश की वित्तीय स्थिति कमजोर बने रहने के प्रमुख कारण हैं।