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आवश्‍यक पूंजी जुटाने के लिए नॉन-कोर बिजनेस से बाहर निकलें सरकारी बैंक, वित्‍त मंत्रालय ने दिया सुझाव

बैंकों की पूंजी जरूरत को देखते हुए वित्‍त मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि सभी सरकारी बैंक अपने नॉन-कोर बिजनेस की एक लिस्‍ट बनाएं और उससे बाहर निकलें।

Abhishek Shrivastava
Updated on: March 02, 2017 19:37 IST
आवश्‍यक पूंजी जुटाने के लिए नॉन-कोर बिजनेस से बाहर निकलें सरकारी बैंक, वित्‍त मंत्रालय ने दिया सुझाव- India TV Paisa
आवश्‍यक पूंजी जुटाने के लिए नॉन-कोर बिजनेस से बाहर निकलें सरकारी बैंक, वित्‍त मंत्रालय ने दिया सुझाव

नई दिल्‍ली। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की पूंजी जरूरत को देखते हुए वित्‍त मंत्रालय ने आज सुझाव दिया है कि सभी सरकारी बैंक अपने नॉन-कोर बिजनेस की एक लिस्‍ट बनाएं और उचित समय पर ऐसे बिजनेस से बाहर निकलें।

सूत्रों ने बताया कि बैंकों को पिछले साल ज्ञान संगम में हुए विचार-विमर्श के अनुरूप कदम आगे बढ़ने के लिए कहा गया है। सूत्रों के अनुसार कुछ बैंकों ने इस दिशा में पहल शुरू कर दी है, जबकि कुछ इसकी तैयारी कर रहे हैं। बैंकों को उनकी इस पहल से न केवल जरूरी पूंजी जुटाने में मदद मिलेगी बल्कि वह अपने कोर बिजनेस पर अधिक मजबूती के साथ ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।

  •  सार्वजनिक क्षेत्र के ज्यादातर बैंकों की अपनी बीमा कंपनियां हैं, जबकि कुछ की पूंजी सलाहकार कंपनियां हैं।
  • कुछ बैंकों की शेयर बाजारों और दूसरे वित्तीय संस्थानों में हिस्सेदारी है।
  • उदाहरण के तौर पर भारतीय स्टेट बैंक की नेशनल स्टॉक एक्सचेंज, यूटीआई, आरसिल सहित कई संस्थानों में हिस्सेदारी है।
  • स्टेट बैंक ने जीवन बीमा कंपनी सहित अपनी कुछ अनुषंगियों में हिस्सेदारी कम करने की अपनी मंशा जाहिर की है।
  • आईडीबीआई बैंक के निदेशक मंडल ने पिछले महीने अपने कुछ नॉन-कोर बिजनेस में हिस्सेदारी बेचने को मंजूरी दी है ताकि बैंक का पूंजी आधार बढ़ाया जा सके।
  • विनिवेश की अपनी योजना के तहत आईडीबीआई बैंक विभिन्न कंपनियों जैसे कि आईडीबीआई फेडरल लाइफ इंश्योरेंस, आईडीबीआई कैपिटल मार्किट सविर्सिज, आईडीबीआई इंटेक, आईडीबीआई एसेट मैनेजमेंट कंपनी, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज, नेशनल सिक्युरिटीज डिपोजिटरी लिमिटेड और एनएसडीएल ई-गवर्नेंस इन्फ्रास्ट्रक्चर में अपनी हिस्सेदारी घटा सकती है।
  • वित्त मंत्रालय के अनुमान के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मार्च 2019 में समाप्त होने वाली चार साल की अवधि के लिए 1.8 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता होगी।

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