नई दिल्ली। वस्तुओं के परिवहन पर नजर रखने तथा माल एवं सेवा कर (जीएसटी) चोरी पर लगाम लगाने के लिए जीएसटी ई-वे बिल प्रणाली को अप्रैल से भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के फास्टैग प्रणाली से जोड़ा जा सकता है। राजस्व विभाग ने परिवहन कंपनियों से विचार-विमर्श के बाद ई-वे बिल, फास्टैग तथा डीएमआईसी की लॉजिस्टिक्स डाटा बैंक (एलडीबी) सेवाओं को एकीकृत करने के लिए अधिकारियों की एक समिति गठित की है।
एक अधिकारी ने कहा कि यह हमारे नोटिस में आया है कि कुछ परिवहन कंपनियां एक ई-वे बिल सृजित कर वाहनों के कई चक्कर लगवा रहे हैं। ऐसे में ई-वे बिल को फास्टैग के साथ एकीकरण से वाहनों की स्थिति का पता लगाने में मदद मिलेगी। साथ ही इससे यह भी पता चलेगा कि वाहन ने कितनी बार राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के टोल प्लाजा को पार किया है।
उसने कहा कि अखिल भारतीय स्तर पर एकीकृत प्रणाली अप्रैल से चालू किए जाने की योजना है। कर्नाटक पायलट आधार पर एकीकृत प्रणाली का क्रियान्वयन कर रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर इसके क्रियान्वयन से न केवल वस्तुओं पर नजर रखने में मदद मिलेगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि ई-वे बिल का उपयोग सही यात्रा अवधि के लिए हो।
अधिकारी ने कहा कि अधिकारियों की समिति सभी संबद्ध पक्षों को इसके लाभ के बारे में जानकारी देगी। इस कदम से परिवहन के क्षेत्र में परिचालन संबंधी दक्षता बेहतर होगी। उन्होंने कहा कि इससे उन कारोबारियों द्वारा जीएसटी की चोरी पर लगाम लगाने में भी मदद मिलेगी, जो आपूर्ति श्रृंखला में खामियों का लाभ उठाते हैं।
कर अधिकारियों ने अप्रैल-दिसंबर के दौरानप 3,626 मामलों में कुल 15,278.18 करोड़ रुपए की जीएसटी चोरी का पता लगाया है। ई-वे बिल प्रणाली को कर चोरी रोकने का प्रमुख उपाय माना जाता है। इसे 50,000 रुपए से अधिक मूल्य के सामान के एक राज्य से दूसरे राज्य में परिवहन के लिए एक अप्रैल 2018 को लागू किया गया। वहीं राज्यों के भीतर इतने ही मूल्य के सामान के मामले में इसे चरणबद्ध तरीके से 15 अप्रैल से लागू किया गया।