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भारत का कौशल संकट है गंभीर, 22,000 करोड़ रुपए वाली परियोजनाएं भी नहीं हो सकती हैं सफल

पिछले दो हफ्तों में, केंद्रीय कैबिनेट ने दो प्रमुख कौशल विकास योजनाओं को अपनी मंजूरी दी है, जिनकी लागत 22,000 करोड़ रुपए (3.3 अरब डॉलर) है।

Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Published on: July 20, 2016 8:37 IST
Not Enough: भारत का कौशल संकट है गंभीर, 22,000 करोड़ रुपए वाली परियोजनाएं भी नहीं हो सकती हैं सफल- India TV Paisa
Not Enough: भारत का कौशल संकट है गंभीर, 22,000 करोड़ रुपए वाली परियोजनाएं भी नहीं हो सकती हैं सफल

नई दिल्‍ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाखों युवा भारतीयों को रोजगार उपलब्‍ध कराने के लिए खजाने के दरवाजे खोल दिए हैं। पिछले दो हफ्तों में, केंद्रीय कैबिनेट ने दो प्रमुख कौशल विकास योजनाओं (स्किल डेवेलपमेंट स्‍कीम) को अपनी मंजूरी दी है, जिनकी लागत 22,000 करोड़ रुपए (3.3 अरब डॉलर) है। इस तरह की पहल भारत के भविष्‍य के लिए महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि एशिया महाद्वीप में यहां 2050 तक सबसे ज्‍यादा –एक अरब से ज्‍यादा- काम करने वाले युवा वर्ग की आबादी होगी।

स्‍कीम की विस्‍तृत जानकारी यह है:  

  • केंद्रीय कैबिनेट ने 13 जुलाई को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाय) के तहत 12,000 करोड़ रुपए वाली स्‍किल डेवेलपमेंट प्‍लान को मंजूरी दी है, इसके तहत चार साल में एक करोड़ भारतीयों को प्रशिक्षित किया जाएगा। इसमें घरेलू उद्योगों और गल्‍फ देशों, यूरोप तथा अन्‍य देशों में रोजगार के लिए अंतरराष्‍ट्रीय मानकों के अनुरूप प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • 5 जुलाई को कैबिनेट ने 2020 तक 50 लाख लोगों को ट्रेंड करने के लिए 10,000 करोड़ रुपए के अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम को मंजूरी दी। सरकार ने अपने एक बयान में कहा कि यह स्‍कीम पूरे देश में संपूर्ण अप्रेंटिसशिप ईकोसिस्‍टम को उत्‍प्रेरित करेगा और यह सभी भागीदारों के लिए जीत की स्थिति होगी। देश में यह एक सबसे ज्‍यादा ताकतवर स्किल डिलीवरी व्‍हीकल बनेगा।

भारत के स्किल डेवेलपमेंट मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि

यह हमारे देश के युवाओं को सशक्‍त बनाने की दिशा में हमारे लिए एक बड़ा कदम है और हम मजबूत निगरानी के साथ इस प्रणाली की क्षमता बढ़ाने और प्रशिक्षण को अधिक प्रभावी बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

सरकार ने यह कदम ऐसे समय में उठाए हैं, जब भारत स्‍वयं को दुनिया का मैन्‍युफैक्‍चरिंग हब बनाने की कोशिशों में जुटा हुआ है। पीएम मोदी वैश्विक कंपनियों को भारत में निर्माण केंद्र स्‍थापित करने का न्‍यौता दे रहे हैं। ज्‍यादा इंडस्‍ट्री का मतलब ज्‍यादा जॉब और यदि भारत लगातार कुशल श्रमिकों की आपूर्ति नहीं कर पाता है तो यह कंपनियां अन्‍य देशों का रुख कर सकती हैं। इसलिए हाई-स्किल लेबर भारत के लिए एक महत्‍वपूर्ण मुद्दा है। अधिकांश भारतीय इंजीनियरिंग ग्रेजुएट जॉब के लिए सही ढंग से प्रशिक्षित हैं, वहीं 93 फीसदी बिजनेस स्‍कूल ग्रेजुएट बेरोजगार हैं।

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यहां तीन बड़ी समस्‍याएं हैं, जिन्‍हें सरकार को दूर करने की जरूरत है:

पहला, ऐसी योजनाएं पूर्व में सफल नहीं हो पाई हैं। एनजीओ प्रथम ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि पिछले साल जुलाई में लॉन्‍च होने से लेकर अब तक पीएमकेवीवाय ने 20,00,000 लोगों को प्रशिक्षित किया है। लेकिन केवल इनमें से 81,978 लोगों को ही रोजगार मिला है। अधिकांश लोगों ने प्रशिक्षण कार्यक्रम को बीच में ही छोड़ दिया। कुछ लोग प्रशिक्षण के बाद अपने गांव वापस लौट गए और कुछ लोगों ने इसे बीच में ही छोड़ दिया।

यहां अन्‍य लूपहोल भी हैं। यूपीए सरकार द्वारा लॉन्‍च की गई स्‍टैंडर्ड ट्रेनिंग असेसमेंट रिवार्ड (स्‍टार) स्‍कीम के तहत कोई भी प्‍लेसमेंट का रिकॉर्ड नहीं है, जबकि इसके तहत लाखों लोगों को प्रशिक्षण दिया गया। इसके अतिरिक्‍त, आउटलुक मैगजीन द्वारा अगस्‍त 2015 में की गई एक तहकीकात के मुताबिक नेशनल स्किल डेवेलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएसडीसी) में किए गए निवेश का असल फायदा कॉरपोरेट्स को हुआ न कि रोजगार चाहने वालों को। यह एक पब्लिक प्राइवेट पार्टनशिप प्रोग्राम था, जो स्किल ट्रेनिंग देने के लिए फंड उपलब्‍ध कराता था। एनएसडीसी द्वारा उपलब्‍ध कराया गया धन प्राइवेट स्किल ट्रेनर की जेब में गया, जो कि अक्‍सर बड़े कॉरपोरेट्स से जुड़े होते थे, जांच पड़ताल में पाया गया कि इस योजना का कोई भी परिणाम नहीं निकला।

संपूर्ण स्‍किल इंडिया प्रोग्राम ने बड़े स्‍तर पर स्‍कूल स्‍तर की शिक्षा को अनदेखा किया है। प्राइमरी स्‍कूल के छात्र बुनियादी गणित के सवाहों को हल नहीं कर सकते या किताबों को नहीं पढ़ सकते, जो उन्‍हें पढ़ना आना चाहिए। सरकार ने अपनी प्रस्‍तावित नई राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति में इस वास्‍तविकता को रेखांकित किया है, लेकिन अभी तक देश के शिक्षा तंत्र में सुधार के लिए सरकार ने अभी तक कोई बड़ी घोषणा नहीं की है।

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