नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने 1 जून 2018 से सभी अवधि की अपनी प्रभावी एमसीएलआर दरों में 0.10 प्रतिशत की वृद्धि कर दी है। एमसीएलआर में होने वाली वृद्धि का सीधा असर कर्जदारों द्वारा चुकाए जाने वाले ब्याज पर पड़ता है। एमसीएलआर बढ़ने से आमतौर पर ईएमआई भी बढ़ जाती है।
एमसीएलआर को मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट कहते हैं, जो कि कर्जदारों के लिए ऋण लागत तय करने का मुख्य पैमाना है।
एसबीआई ने यह कदम आरबीआई द्वारा 6 जून को घोषित की जाने वाली द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा से ठीक पहले उठाया है। एसबीआई द्वारा एमसीएलआर में इस साल यह दूसरी बार वृद्धि की गई है। एसबीआई इससे पहले मार्च 2018 में एमसीएलआर को बढ़ा चुकी है। मार्च में की गई वृद्धि 2016 के बाद की गई पहली वृद्धि थी।
बैंक की वेबसाइट के मुताबिक, 1 जून 2018 से प्रभावी नई एमसीएलआर रेट निम्न प्रकार होंगे:
यदि लिए गए लोन पर ब्याज दर बढ़ती है, तो ईएमआई स्वत: बढ़ जाती है। यहां यह ध्यान रखने की बात है कि एमसीएलआर में वृद्धि एसबीआई द्वारा फिक्स्ड डिपॉजिट रेट में बढ़ोतरी के तुरंत बाद की गई है। इससे साफ है कि नए होम लोन लेने वाले ग्राहक ब्याज दरों में कुछ कमी की उम्मीद कर रहे हैं। मौजूदा कर्जदारों पर एमसीएलआर रेट बढ़ने से उनकी ईएमआई पर असर पड़ेगा।
आरबीआई के मुताबिक एक अप्रैल 2016 के बाद होम लोन सहित सभी लोन को एमसीएलआर से लिंक करना अनिवार्य है। बैंक एमसीएलआर रेट के बराबर या इससे अधिक पर लोन देने के लिए फ्री हैं। हालांकि, लोन की ब्याज दर एमसीएलआर से कम नहीं हो सकती है।