नई दिल्ली। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने सोमवार को मोदी सरकार पर अर्थव्यवस्था के खराब प्रबंधन का आरोप लगाते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था ढहने के कगार पर है और इसकी देखभाल का जिम्मा अनाड़ी डॉक्टरों के हाथ में है। राज्यसभा में 2020-21 के आम बजट पर चर्चा की शुरुआत करते हुए चिदंबरम ने कहा कि बढ़ती बेरोजगारी और घटते उपभोग की वजह से आज देश गरीब हो रहा है। अर्थव्यवस्था के समक्ष मांग की कमी है और निवेश इसकी राह देख रहा है। अर्थव्यवस्था गिरती मांग और बढ़ती बेरोजगारी का सामना कर रही है।
इस समय देश में डर और अनिश्चितता का माहौल है। चिदंबरम ने कहा कि चार साल तक भाजपा सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा है कि अर्थव्यवस्था आईसीयू में पहुंच चुकी है। लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि मरीज को आईसीयू से बाहर रखा गया है, अनाड़ी डॉक्टर उसका इलाज कर रहे है और आसपास खड़े लोग सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के नारे लगा रहे हैं। यह खतरनाक है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने जिस भी अनुभवी सक्षम डॉक्टर की पहचान की है, सभी देश छोड़कर चले गए। चिदंबरम ने कहा कि ऐसे लोगों की सूची मे रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का नाम शामिल है। उन्होंने सवाल किया कि आपका डॉक्टर या चिकित्सक कौन है, मैं जानना चाहता हूं।
सरकार कांग्रेस को तो अछूत समझती है। दूसरे विपक्षी दलों के बारे में उसकी राय अच्छी नहीं है। ऐसे में वह किसी से सलाह नहीं करती है। चिदंबरम ने आरोप मढ़ा कि सरकार ने लोगों के हाथ में पैसा देने के बजाये कंपनी कर में कटौती के जरिये 200 कॉरपोरेट के हाथ में पैसा दिया है। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने 160 मिनट के बजट भाषण में न तो अर्थव्यवस्था की बात की और न उसका प्रबंधन किस तरीके से किया जाए, इसके बारे में कुछ कहा। पूर्व वित्त मंत्री ने तंज कसते हुए कहा कि आप ऐसे बंद चैंबर में रहते हैं जहां आप सिर्फ अपनी ही आवाज की प्रतिध्वनि सुनना चाहते हैं।
मोदी सरकार के समक्ष समस्याओं का जिक्र करते हुए चिदंबरम ने कहा कि वह अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करती। हमेशा नकारने के मूड में रहती है जो अपनी इच्छा होती है वही करती है। पूर्व वित्त मंत्री ने नोटबंदी और जल्दबाजी में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने को बहुत बड़ी गलती करार देते हुए कहा कि इसने अर्थव्यवस्था को रौंद डाला। मोदी सरकार पहले से संरक्षणवाद की प्रवृति वाली है।
मजबूत रुपए के साथ ही वह द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों के भी खिलाफ है। उन्होंने कहा कि सरकार हर चीज को नकार रही है। पिछली लगातार छह तिमाहियों से आर्थिक वृद्धि दर नीचे आ रही है। उन्होंने वित्त मंत्री सीतारमण के 160 मिनट के बजट भाषण पर भी हैरानी जताते हुए कहा कि वह इससे क्या कहना चाहती थीं। वह बजट भाषण के कुछ पन्ने पढ़ भी नहीं पाईं। चिदंबरम ने कहा कि उनके बजट में आर्थिक समीक्षा का कोई उल्लेख नहीं था। न ही उन्होंने समीक्षा से कुछ विचार लिए।
उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि 2017-18 के अंत तक बेरोजगारी की दर 45 साल के उच्चस्तर 6.1 प्रतिशत पर थी। यही नहीं 2011-12 से 2017-18 के बीच उपभोक्ता खर्च घटकर 3.7 प्रतिशत रह गया। सरकार के बजट आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए चिदंबरम ने कहा कि 2019-20 के बजट में जीडीपी की मौजूदा बाजार मूल्य पर वृद्धि दर 12 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन वास्तव में यह सिर्फ 8.5 प्रतिशत रही। राजकोषीय घाटा की 3.3 प्रतिशत के लक्ष्य की तुलना में 3.8 प्रतिशत पर पहुंच गया। उन्होंने और आंकड़े देते हुए कहा कि राजस्व घाटा 31 मार्च, 2020 तक 2.3 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा गया। लेकिन यह 2.4 प्रतिशत रहा।
अगले वित्त वर्ष में यह बढ़कर 2.8 प्रतिशत हो जाएगा। उन्होंने कहा कि अगले वित्त वर्ष में पूंजीगत खर्च 1.4 प्रतिशत से घटकर 0.7 प्रतिशत रह जाएगा। चिदंबरम ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में शुद्ध कर राजस्व का लक्ष्य 16.49 लाख करोड़ रुपये का रखा गया था, लेकिन पहले नौ माह में सिर्फ नौ लाख करोड़ रुपए ही राजस्व जुटाया गया है। और अब आप चाहते हैं कि हम भरोसा करें कि यह मार्च, 2020 तक 15 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि 2019-20 में व्यय 27.86 लाख करोड़ रुपए का बजट अनुमान लगाया गया है, लेकिन पहले नौ माह अप्रैल-दिसंबर तक यह सिर्फ 11.78 लाख करोड़ रुपये रहा। मार्च तक आप इसे 27 लाख करोड़ रुपये पर पहुंचाना चाहते है।। उन्होने कहा कि खाद्य सब्सिडी, कृषि, पीएम किसान योजना, ग्रामीण सड़कें, मध्याह्न भोजन योजना, आईसीडीएस, कौशल विकास, आयुष्मान भारत, शहरी विकास से लेकर मनरेगा तक, सभी के लिए आवंटन घटाया गया है।