नई दिल्ली। विश्व बैंक के उद्यमिता आंकड़ों के अनुसार गठित की गई नई कंपनियों की कुल संख्या के मामले में भारत तीसरे पायदान पर रहा है। वर्ष 2014 से भारत में नई कंपनियों के गठन में उल्लेखनीय तेजी देखी जा रही है। वर्ष 2014 में गठित की गई लगभग 70,000 नई कंपनियों की तुलना में यह संख्या वर्ष 2018 में लगभग 80 प्रतिशत बढ़कर तकरीबन 1,24,000 के स्तर पर पहुंच गई। वर्ष 2006 से लेकर वर्ष 2014 तक की अवधि के दौरान औपचारिक क्षेत्र में गठित की गई नई कंपनियों की संख्या की संचयी वार्षिक वृद्धि दर 3.8 प्रतिशत रही, वहीं दूसरी ओर वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2018 तक की अवधि के दौरान यह वृद्धि दर काफी अधिक 12.2 प्रतिशत दर्ज की गई।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा शुक्रवार को संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया कि 2006-14 के दौरान नई कंपनियों के गठन में 3.8 प्रतिशत की वृद्धि दर की तुलना में 2014-18 के दौरान वृद्धि दर बढ़कर 12.2 प्रतिशत हो गई और विनिर्माण, कृषि अथवा अवसंरचना क्षेत्र की तुलना में सेवा क्षेत्र में कहीं अधिक कंपनियों का गठन हुआ। सेवा क्षेत्र में सर्वाधिक उद्यमिता दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मिजोरम, केरल, अंडमान एवं निकोबार द्वीप और हरियाणा में देखने को मिली। विनिर्माण क्षेत्र में सर्वाधिक उद्यमिता गुजरात, मेघालय, पुडुचेरी, पंजाब और राजस्थान में नई कंपनियों का गठन रही।
सर्वेक्षण 2019-20 में कहा गया है कि भारत की नई आर्थिक संरचना अर्थात सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) में तुलनात्मक बढ़त को दर्शाते हुए सेवा क्षेत्र में गठित नई कंपनियों की संख्या विनिर्माण, कृषि अथवा अवसंरचना क्षेत्र की तुलना में काफी अधिक रही है। सेवा क्षेत्र में सर्वाधिक उद्यमिता दिल्ली, मिजोरम, उत्तर प्रदेश, केरल, अंडमान व निकोबार द्वीप और हरियाणा में देखने को मिली।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत के सभी जिलों और सेक्टरों में गठित नई कंपनियों की संख्या में काफी अंतर देखा जा रहा है। इसके अलावा, नई कंपनियों का गठन पूरे देश में हो रहा है और यह केवल कुछ ही शहरों तक सीमित नहीं है। किसी भी जिले में साक्षरता और शिक्षा बेहतरीन रहने से वहां स्थानीय स्तर पर उद्यमिता को काफी बढ़ावा मिलता है।
उदाहरण के लिए, जनगणना 2011 के अनुसार भारत के पूर्वी हिस्से में साक्षरता दर सबसे कम लगभग 59.6 प्रतिशत है और यही वह क्षेत्र है, जहां सबसे कम नई कंपनियों का गठन हुआ है। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि दरअसल जब साक्षरता दर 70 प्रतिशत से अधिक होती है, तभी उद्यमिता पर साक्षरता का काफी अच्छा प्रभाव देखने को मिलता है।
आर्थिक सर्वेक्षण में इस ओर ध्यान दिलाया गया है कि जब किसी जिले में स्थानीय शिक्षा का स्तर और भौतिक अवसंरचना की गुणवत्ता अच्छी होती है, तो वहां नई कंपनियों के गठन पर उल्लेखनीय असर होता है। जमीनी स्तर पर उद्यमिता केवल आवश्यकता को देखते हुए ही नहीं बढ़ती है क्योंकि किसी जिले में नई कंपनियों के पंजीकरण में 10 प्रतिशत की वृद्धि होने पर जीडीडीपी (सकल जिला विकास उत्पाद) में 1.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है। इस प्रकार, प्रशासनिक पिरामिड के निचले स्तर में उद्यमिता का एक जिले में जमीनी स्तर पर संपत्ति सृजन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जीडीडीपी पर उद्यमिता का यह प्रभाव विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रों में सर्वाधिक होता है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि विनिर्माण, अवसंरचना तथा सेवा क्षेत्र की उद्यमी क्षमताओं के सापेक्ष कृषि क्षेत्र में उद्यमिता क्षमताएं देशभर के ज्यादातर जिलों में समान रूप से फैली हुई हैं। कृषि क्षेत्र में उद्यमिता गतिविधियों के मामले में मणिपुर, मेघालय, मध्य प्रदेश, असम, त्रिपुरा और ओडिशा सबसे आगे हैं। पूर्वोत्तर में संस्थागत खाद्य व्यापार जैसे जैविक खेती और चाय बागान संभवत: निजी उद्यमों के हाथ में होंगे। मध्य प्रदेश और ओडिशा में ज्यादातर उद्यम कृषि उत्पाद कंपनियां हैं, जो सहकारी समितियों और निजी कंपनियों को मिलाकर बनाई गई हैं।
सर्वेक्षण के अनुसार गुजरात, मेघालय, पुडुचेरी, पंजाब और राजस्थान में विनिर्माण क्षेत्र में उद्यमिता सबसे ज्यादा है। गुजरात में सुरेन्द्र नगर, राजकोट, भावनगर और सूरत इस मामले में सबसे आगे हैं। इन स्थानों पर मुख्य रूप से वस्त्र, रसायन, धातु, प्लास्टिक और फार्मास्यूटिकल की विनिर्माण इकाइयां हैं।