नई दिल्ली। आम बजट से ठीक पहले संसद में मौजूदा वित्त मंत्री देश की आर्थिक दशा की तस्वीर पेश करते हैं। इसे आर्थिक सर्वेक्षण कहते हैं। इसमें पिछले 12 महीने के दौरान देश में डिवेलपमेंट का ट्रेंड क्या रहा, देश के किस क्षेत्र में कितना निवेश हुआ, कृषि समेत अन्य उद्योगों का कितना विकास हुआ, योजनाओं को किस तरह अमल में लाया गया, इन सबके बारे में विस्तार से बताया जाता है। एक्सपर्ट्स कहते है कि आर्थिक सर्वेक्षण से आने वाले बजट का काफी हद तक सटीक अनुमान लग जाता है। इस साल तो आर्थिक सर्वेक्षण और भी अहम हो गया है क्योंकि नोटबंदी के बाद देश की अर्थव्यवस्था पर हुए असर का एकदम सही अनुमान देने वाला साबित हो सकता है।
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संसद में पेश होगा आर्थिक सर्वेक्षण
- आर्थिक सर्वेक्षण संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाता है।
- इस सर्वे से जहां पिछले साल की आर्थिक प्रगति का लेखा-जोखा मिलता है, वहीं नए वित्तीय वर्ष में आर्थिक विकास की राह क्या होगी, इस बारे में अंदाजा लग जाता है।
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कौन बनता है आर्थिक सर्वेक्षण
- बीते वित्त वर्ष में देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की समीक्षा के बाद वित्त मंत्रालय यह वार्षिक दस्तावेज बनाता है।
- इसे मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) अपनी टीम के साथ मिलकर तैयार करते हैं।
- इस बार अरविंद सुब्रमण्यन और उनकी टीम ने आर्थिक सर्वे तैयार किया है।
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सिफारिश मानना सरकार पर निर्भर करता है!
- सरकार आर्थिक सर्वे में की गई सिफारिशें मानने के लिए बाध्य नहीं होती है।
- सरकार इसे नीति निर्देशक के रूप में जरूर महत्व देती है।
- अतीत में आर्थिक सर्वे में कई नीतियों में इस तरह के बदलाव की सिफारिश कर चुकी है जो मौजूदा सरकार की सोच से मिलती-जुलती नहीं थी।
- आर्थिक सर्वे से बजट का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
- कई मौकों पर आर्थिक सर्वे में की गई सिफारिशें बजट प्रस्तावों में शामिल नहीं की गईं।