नई दिल्ली। भारत में जितनी तेजी से e-commerce का बाजार अपने पैर पसार रहा है, उतनी ही तेजी से इन कंपनियों में निवेश भी बढ़ रहा है। पिछले पांच साल के दौरान लेट स्टेज ई-कॉमर्स कंपनियों का एवरेज एंटरप्राइज वैल्यूएशन 5.78 गुना बढ़ा है। वैल्यूएशन के इस तरह बढ़ जाने से ई-कॉमर्स सेगमेंट में विलय और अधिग्रहण में परेशानियां खड़ी होने लगी हैं। इंडियन वेंचर कैपिटल और पीई इंडस्ट्री की 7वीं सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010-12 के दौरान लेट स्टेज कंपनियों का एवरेज एंटरप्राइज वैल्यूएशन 881 करोड़ रुपए था, जो 2013-15 की अवधि के दौरान बढ़कर 5,095 करोड़ रुपए हो गया है।
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि डिस्काउंट के दम पर बिक्री कर कंपनियों ने वैल्यूएशन तो बढ़ा लिए, लेकिन क्या यह रणनीति लंबे समय तक टिकेगी?
तेजी से बढ़ते इस वैल्यूएशन ने निवेशकों के बीच भी चिंता खड़ी कर दी है। इसलिए अब वेंचर कैपिटलिस्ट भी अपनी रणनीति बदल रहे हैं। पहले ये निवेशक सीधे इक्विटी खरीदते थे, लेकिन अब इसकी बजाये वह स्ट्रक्चर्ड निवेश पर फोकस कर रहे हैं।
समय की तुलना में बहुत ज्यादा बढ़ी वैल्यूएशन
आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर थिलाईराजन, जिन्होंने इस रिपोर्ट को तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाई है, का कहना है कि समय की तुलना में ई-कॉमर्स कंपनियों का वैल्यूएशन काफी अधिक बढ़ा है। अर्ली स्टेज एंटरप्राइज का वैल्यूएशन में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। वास्तव में पिछले पांच सालों के दौरान इसमें थोड़ी कमी आई है। लेकिन ग्रोथ स्टेज एंटरप्राइज का वैल्यूएशन 160 फीसदी बढ़ा है। सबसे ज्यादा वैल्यूएशन लेट स्टेज कंपनियों का बढ़ा है। लेट स्टेज कंपनियों का एवरेज एंटरप्राइज वैल्यूएशन पिछले पांच साल के दौरान 500 फीसदी बढ़ा है।
तेजी से बढ़ी वैल्यूएशन
लेट स्टेज कंपनियों का एवरेज एंटरप्राइज वैल्यूएशन 2010-2012 में 881 करोड़ रुपए था, जो 2013-15 में बढ़कर 5095 करोड़ रुपए हो गया है। इस प्रकार इनके वैल्यूएशन में 5.78 गुना वृद्धि हुई है। यदि हम 15 साल की अवधि को देखें तो लेट स्टेज कंपनियों की एंटरप्राइज वैल्यूएशन की वार्षिक चक्रवृद्धि दर 20 फीसदी है।
इसी प्रकार ग्रोथ स्टेज कंपनियों की एवरेज वैल्यूएशन 2010-12 में 357 करोड़ रुपए थी, जो 2013-15 में बढ़कर 932 करोड़ रुपए हो गई है। इसमें 2.61 गुना वृद्धि हुई है। 15 साल के लिए वार्षिक चक्रवृद्धि दर तकरीबन 14 फीसदी है।
वहीं दूसरी ओर अर्ली स्टेज कंपनियों की एवरेज वैल्यूएशन समय के साथ धीरे-धीरे कम हुई है। 2001-03 में इनकी वैल्यूएशन 79 करोड़ रुपए थी, जो 2013-15 में घटकर 50 करोड़ रुपए रह गई है।
ई-कॉमर्स का वैल्यूएशन बढ़ा सबसे ज्यादा
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले पांच सालों में ई-कॉमर्स कंपनियों का वैल्यूएशन जितनी तेजी से बढ़ा है उतनी तेजी से किसी और सेक्टर की कंपनियों का वैल्यूएशन नहीं बढ़ा है। पिछले पांच साल में ई-कॉमर्स का वैल्यूएशन 167 फीसदी बढ़ा है, इसके बाद हेल्थकेयर और लाइफ साइंस का वैल्यूएशन 40 फीसदी, आईटी और आईटीईएस का वैल्यूएशन तकरीबन 30 फीसदी बढ़ा है।
फंड जुटाने की उम्र भी हुई कम
रिपोर्ट में कहा गया है कि उम्र, जिसके आधार पर कंपनियां फंड हासिल करती हैं, भी घटी है। पहले की तुलना में अब कंपनियां बहुत जल्दी ही फंड हासिल कर रही हैं। 15 साल पहले अर्ली स्टेज फंडिंग पाने के लिए औसत आयु 5 साल होती थी, जो कि अब घटकर एक साल रह गई है।
निवेशकों की बढ़ी चिंता
वैल्यूएशन में इतनी तेज वृद्धि से निवेशक भी पहले की तुलना में ज्यादा निवेश को लेकर अनिश्चित हो गए हैं और उन्होंने जोखिम को कम करने के लिए सीधे निवेश के बजाये अब स्ट्रक्चर्ड इन्वेस्टमेंट पर फोकस बढ़ा दिया है। सामान्य तौर पर वेंचर कैपिटालिस्ट इक्विटी इन्वेस्टमेंट करते हैं, लेकिन हाल ही के दिनों में उन्होंने प्रीफेरेंस शेयर या कंवर्टीबल शेयर के विकल्प पर निवेश करना शुरू किया है। इससे निवेशकों को अधिक सुरक्षा मिलती है। पहले तकरीबन 95-99 फीसदी निवेश सीधे शेयर खरीद कर किया जाता था, जो कि अब घटकर 15-18 फीसदी रह गया है। इससे कंपनी की वैल्यूएशन उसके प्रदर्शन के आधार पर एडजस्ट करने में मदद मिलती है।
जल्द आएगा करेक्शन
रिपोर्ट में कहा गया है कि ई-कॉमर्स कंपनियों के ओवर वैल्यूएशन में जल्द ही करेक्शन आना शुरू होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो ऐसे में उन वेंचर्स के लिए अगले चरण में फंड जुटाना मुश्किल होगा, जो सार्वजनिक बाजार से धन जुटाने पर विचार कर रहे हैं।
जबोंग को नहीं मिल रहे निवेशक
जब फेस्टिव सीजन में अन्य ई-कॉमर्स कंपनियां बिक्री बढ़ने से खुश हैं, वहीं जबोंग की बिक्री घटी है और पिछले कई महीनों से इसका वित्तीय प्रदर्शन भी संतोषजनक नहीं है। बहुत अधिक वैल्यूएशन के कारण कोई भी इसे खरीदने में रुचि नहीं दिखा रहा है। सूत्रों ने बताया कि जबोंग ने अपनी वैल्यूएशन 50 करोड़ डॉलर (तकरीबन 3250 करोड़ रुपए) बताई है, जबकि संभावित खरीदार इसके लिए 25 से 30 करोड़ डॉलर से ज्यादा राशि देने को तैयार नहीं है। वहीं दूसरी ओर जबोंग के पांच संस्थापक सदस्यों में से चार पहले ही इसे छोड़ चुके हैं। 2015 की पहली छमाही में कंपनी का घाटा 46 फीसदी बढ़कर 227.4 करोड़ रुपए रहा है, जो कि इससे पहले साल की समान अवधि में 155 करोड़ रुपए था।पेटीएम और स्नैपडील ने जबोंग को खरीदने में अपनी रुचि दिखाई थी लेकिन अब पेटीएम इस दौड़ से बाहर निकल गई है। पेटीएम 20 से 25 करोड़ डॉलर से ज्यादा राशि जबोंग को देने के लिए तैयार नहीं है।
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