नई दिल्ली। देश में तेजी से विस्तार कर रही ई-कॉमर्स (E-commerce) कंपनियों ने उन्हें वस्तु एवं सेवा कर (GST) के दायरे से बाहर रखने की मांग की है। हालांकि, राज्यों के वित्त मंत्री उनकी इस मांग को मानने के लिए तैयार नहीं दिखते। संसद द्वारा जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की पहली बैठक में ऑनलाइन रिटेल विक्रेताओं ने कहा कि वे वेंडर्स और ग्राहकों को सिर्फ प्लेटफॉर्म उपलब्ध करा रही हैं, इसमें जो बिक्री होती है उससे वह पैसा नहीं बना रही हैं।
बैठक में पेश प्रस्तुतीकरण के अनुसार फ्लिपकार्ट, अमेजन इंडिया तथा स्नैपडील जैसी कंपनियां वेंडर्स के लिए सिर्फ सेवा प्रदाता हैं और ऐसे में उनकी सिर्फ सेवा से होने वाली आय पर जीएसटी लगना चाहिए। समिति के चेयरमैन एवं पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने जब उनसे उनके अरबों डॉलर के मूल्यांकन के बारे में पूछा तो ई-रिटेलरों ने कहा कि उनकी आमदनी का स्रोत विज्ञापन है, जिस पर वे सर्विस टैक्स का भुगतान करती हैं। उनकी दलील थी कि पोर्टल के जरिये सामान बेचने वाली कंपनियों पर जीएसटी लगना चाहिए।
दूसरी तिमाही में ई-कॉमर्स कंपनियों का वार्षिक आधार पर कारोबार 10 फीसदी घटा
नास्कॉम ने अपने प्रस्तुतीकरण में कहा कि यह क्षेत्र रोजगार के काफी अवसर पैदा कर रहा है और छोटे उद्योगों को अपने उत्पाद बेचने का मौका दे रहा है। मित्रा ने हालांकि चर्चा में कहा कि अभी तक जो निष्कर्ष निकला है, वह यह है कि ई-कॉमर्स क्षेत्र लाखों डॉलर बना रहा है, लेकिन वास्तव में कोई टैक्स नहीं दे रहा है। मित्रा ने कहा कि ऑनलाइन उत्पाद खरीदने वाले ग्राहक वैट देते हैं। उत्पादक एक्साइज ड्यूटी अदा करते हैं, लेकिन ये कंपनियां कोई टैक्स नहीं दे रही हैं क्योंकि इनके कारोबार को केवल कंपनियों के माल को ग्राहक तक पहुंचाना माना जाता है। उन्होंने कहा कि उनका कारोबार 6-8 अरब डॉलर तक का है। ई-कॉमर्स से प्रतिस्पर्धा आती है, लेकिन वे कुछ मूल्य भी जोड़ती हैं। अन्यथा कैसे आपकी कंपनियां इतना अधिक मूल्यांकन पा रही हैं।