नई दिल्ली। रेटिंग एजेंसी इकरा के मुताबिक वित्त वर्ष 2024-25 तक नई बसों की बिक्री में ई-बसों की 8-10 प्रतिशत हिस्सेदारी होने का अनुमान है और भारत के विद्युतीकरण अभियान में इस सेग्मेंट के सबसे आगे रहने की उम्मीद है। इकरा ने एक बयान में कहा कि पिछले डेढ़ साल में महामारी के कारण सार्वजनिक परिवहन खंड में चुनौतियों के बावजूद ई-बस सेग्मेंट में हलचल पहले ही दिखाई दे रही है। रेटिंग एजेंसी ने आगे कहा कि हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों की तेज स्वीकार्यता एवं विनिर्माण (एफएएमई) योजना का विस्तार अप्रैल 2024 तक दो साल के लिए किया गया, जिससे मध्यम अवधि में इस सेग्मेंट को बढ़ावा मिलेगा।
रेटिंग एजेंसी ने कहा कि हालांकि इस योजना को जमीनी स्तर पर लागू करने में महामारी के कारण कुछ देरी हुई है, जिसके चलते कुछ चुनौतियां भी हैं। एफएएमई योजना के तहत इलेक्ट्रिक बसों पर पूंजीगत सब्सिडी का प्रावधान है। इक्रा रेटिंग्स के उपाध्यक्ष और सह-समूह प्रमुख श्रीकुमार कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘‘इलेक्ट्रिक बस परियोजनाओं में बस की लागत कुल परियोजना का 75-80 प्रतिशत है। एफएएमई-दो योजना के तहत प्रति बस 35-55 लाख रुपये की पूंजीगत सब्सिडी के साथ, परियोजना लागत का एक बड़ा हिस्सा पूंजीगत सब्सिडी के जरिए पूरा किया जा सकता है, जो 40 प्रतिशत तक हो सकता है। यह इन परियोजनाओं की व्यवहार्यता के लिए अच्छा संकेत है।’’
सरकार लगातार देश में इलेक्ट्रिक वाहनों का बढ़ावा देने पर काम कर रही है। इसके लिये सरकार एक तरफ आम लोगों के द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले वाहनों पर छूट बढ़ा रही है, दूसरी तरफ सरकारी कंपनियां और प्रतिष्ठान लगातार अपने वाहनों के बेड़े में इलेक्ट्रिक व्हीकल की संख्या बढ़ा रहे हैं। हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज लिमिटेड (सीईएसएल) ने बिजली से चलने वाले एक लाख तिपहिया वाहन खरीदने के लिए निविदा जारी की। एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड की सहायक कंपनी सीईएसएल ने एक बयान में कहा कि उसने तिपहिया वाहनों की खरीद के लिए प्रस्ताव जारी किया है। कंपनी ने बताया कि उसने तिपहिया वाहनों की अलग-अलग श्रेणियों की खरीद के लिए मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) से निविदाएँ मंगाई हैं। इसमें कचरा निपटान, माल ढुलाई लोडर, भोजन और वैक्सीन परिवहन और यात्री ऑटो जैसे तिपहिया वाहन शामिल हैं।
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