नई दिल्ली। अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की अमेरिकी उत्पाद खरीदो-अमेरिकी लोगों को रोजगार दो की घोषणा से 150 अरब डॉलर के भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग में बेचैनी है। भारतीय आईटी कंपनियां अब यह इंतजार कर रही हैं कि कैसे नया प्रशासन आउटसोर्सिंग तथा कुशल श्रमबल की आवाजाही को लेकर नीतियां बनाता है।
भारत के आईटी निर्यात में अमेरिका का हिस्सा 60 प्रतिशत है। ऐसे में उद्योग और सरकार अपने पहुंच कार्यक्रम के तहत यह बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे कि कैसे भारतीय प्रौद्योगिकी क्षेत्र ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में भूमिका निभाई है। साथ ही यह भी बताया जाएगा कि कैसे भारतीय कंपनियों ने अरबों डॉलर के करों का भुगतान किया है और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसरों का सृजन किया है।
- भारतीय आईटी कंपनियों की उपस्थिति 80 देशों के 200 शहरों में है।
- इन कंपनियों ने अमेरिका के लिए काफी मूल्यवर्धन किया है।
- लाखों लोगों को नौकरियां दी हैं। इनमें अमेरिकी भी शामिल हैं।
आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा,
भारत ट्रंप सरकार के साथ अर्थपूर्ण संपर्क चाहता है। हम भारतीय कंपनियों के बारे में ट्रंप के विचारों का इंतजार कर रहे हैं। हमने अपने विचार उन्हें बता दिए हैं। आगे भी हम ऐसा करना जारी रखेंगे।
नास्कॉम के अध्यक्ष आर चंद्रशेखर ने कहा कि,
ट्रंप भारत के अनुकूल हैं। चूंकि वह खुद उद्योगपति हैं इसलिए कारोबारी वास्तविकताओं को समझते हैं। उन्होंने आगाह किया कि नए प्रशासन को किसी अंकुश की वजह से अमेरिका के अंदर रोजगार सृजन पर प्रतिकूल असर की उन्हें काफी सावधानी से समीक्षा करनी होगी।
- ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट प्रतिबद्धता से संरक्षणवादी नीतियों को लेकर चिंता बढ़ी है और इससे भारतीय आईटी उद्योग में बेचैनी है।
इंफोसिस के प्रमुख विशाल सिक्का ने कहा कि,
- ट्रंप खुद उद्यमी और कारोबारी नेता हैं। निकट भविष्य में वीजा और एच-1बी वीजा नीतियों में कुछ बदलाव हो सकता है। हम उन पर विचार, विश्लेषण करेंगे और प्रभावों को समझने का प्रयास करेंगे।
- टीसीएस ने भी कहा है कि वह अपने कारोबारी मॉडल में बदलाव कर अग्रसारी तरीके से इन चिंताओं को दूर करने का प्रयास कर रही है।