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नोटबंदी के प्रभाव का वास्तविक आकलन करने में लग सकते हैं कुछ महीने: मुख्य आर्थिक सलाहकार

सुब्रमण्‍यम ने कहा कि पिछले वित्‍त वर्ष के दौरान की गई नोटबंदी के वास्तविक असर के आकलन में अभी कुछ महीने लग सकते हैं।

Dharmender Chaudhary
Updated on: April 19, 2017 17:42 IST
नोटबंदी के प्रभाव का वास्तविक आकलन करने में लग सकते हैं कुछ महीने: मुख्य आर्थिक सलाहकार- India TV Paisa
नोटबंदी के प्रभाव का वास्तविक आकलन करने में लग सकते हैं कुछ महीने: मुख्य आर्थिक सलाहकार

वॉशिंगटन। मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमण्‍यम ने कहा है कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान भारत की उच्च आर्थिक वृद्धि दर नोटबंदी के खासकर असंगठित क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभाव को संभवत: प्रतिबिंबित नहीं करती है। इसके वास्तविक असर के आकलन में कुछ महीने लग सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सार्वभौमिक आय योजना (यूबीआई) तभी काम कर सकती है जब पहले से जारी तमाम तरह की कल्याणकारी योजनाओं को समाप्त किया जाए।

हालांकि, उन्होंने कहा कि पिछले साल आठ नवंबर को अचानक से कुल मुद्रा के 86 प्रतिशत हिस्से को वापस लेने के निर्णय का जो प्रभाव था, वह काफी हद तक खत्म हो गया है। उसकी जगह 500 और 2,000 रुपए के नए नोट बैंकों में आ गए हैं। नोटबंदी के बावजूद भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2016-17 में 7.1 प्रतिशत रही और वर्ष की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में यह 7 प्रतिशत रही।

अमेरिकी शोध संस्थान सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट में सुब्रमण्‍यम ने कहा, असंगठित क्षेत्र पर नोटबंदी का प्रभाव पड़ा जिसका आकलन मुश्किल है। लेकिन मुझे लगता है कि प्रभाव काफी हद तक समाप्त हो गया है। यह समस्या अर्थव्यवस्था में नकदी से जुड़ी थी। नकदी वापस आ गई है। इसीलिए उम्मीद है कि इससे जुड़ी जो अल्पकालीन लागत थी, वह पीछे छूट गई है।

सुब्रमण्‍यम अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्वबैंक की सालाना ग्रीष्मकालीन बैठक में भाग लेने के लिए आए हुए हैं। उन्होंने कहा कि नोटबंदी का वास्तविक प्रभाव जीडीपी आंकड़े में प्रतिबिंबित नहीं हुआ। नोटबंदी पर कई सवालों का जवाब देते हुए मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि यह अब समाप्त हो गया है और यह व्यवस्था में बदलाव का संकेत है। उन्होंने स्वीकार किया कि यह कदम डिजिटलीकरण और कर आधार बढ़ाने की दिशा में कदम है।

सार्वभौमिक मूल आय योजना के बारे में उन्होंने कहा कि मुफ्त में पैसा देने का क्रांतिकाारी विचार भारत में तभी काम कर सकता है जब विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को समाप्त किया जाए। बड़े और बच्चों, गरीब या अमीर सभी को यूबीआई के अंतर्गत एक समान राशि उपलब्ध कराने का विचार देने वाले मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि इस प्रकार का कदम का वित्त पोषण पूरी तरह आंतरिक रूप से करना होगा और बड़े पैमाने पर लागू करना होगा।

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