टोक्यो। रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि रक्षा क्षेत्र में घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन देने को लेकर सरकार काम कर रही है, जिससे लड़ाकू विमानों, जहाजों और पनडुब्बियों के लिए आयात पर निर्भरता को कम किया जा सके।
जेटली ने कहा कि सरकार ऐसी नीति पर काम कर रही है, जिससे भारत में विनिर्माण इकाई स्थापित करने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन दिए जा सकें। उन्होंने कहा कि अभी तक हमने निवेश के मामले में अपने नियमों को उदार किया है, हमारी सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियां पहले ही अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ गठजोड़ कर रही हैं, जिससे भारत में विनिर्माण इकाइयां स्थापित की जा सकें।
हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि इस क्षेत्र में एकमात्र खरीदार सरकार है, ऐसे में ऑर्डर मिलने के बाद ही विनिर्माण इकाइयां स्थापित की जाएंगी। यह पूछे जाने पर कि जिस नीति पर विचार चल रहा है, उसमें क्या ऑफसेट नीति में किसी तरह का बदलाव होगा, रक्षा मंत्री ने कहा कि इसमें कोई बदलाव नहीं होगा। रक्षा ऑफसेट नीति के तहत उपकरणों के विदेशी आपूर्तिकर्ता को एक निश्चित प्रतिशत में उत्पादों का विनिर्माण खरीदार देश में करना होता है। यह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के हिसाब से भी किया जा सकता है। रक्षा मंत्री जेटली ने कहा कि हमारी नीतियों में इस हिसाब से बदलाव लाना होगा, जिससे यहां विनिर्माण इकाई लगाने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन मिल सके।
हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि यह नीति क्या होगी और क्या इसमें कर प्रोत्साहन या सरकार का समर्थन मिलेगा? रक्षा मंत्री ने कहा कि रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया को लेकर प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का आयातक है और यह अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.8 प्रतिशत इस पर खर्च करता है। भारत अपनी रक्षा उपकरणों की जरूरत का 70 प्रतिशत आयात करता है। सरकार इस आंकड़े में बदलाव लाना चाहती है।
सरकार ने 2025 तक हथियारों और सैन्य उपकरणों पर 250 अरब डॉलर खर्च करने की प्रतिबद्धता जताई है। जेटली ने पिछले महीने अमेरिका में कहा था कि इस नीति से रक्षा क्षेत्र की वैश्विक कंपनियों को भारत में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने में मदद मिलेगी।