नई दिल्ली। अमेरिका में रिकॉर्ड उत्पादन, यूरोजोन और चीन व ब्राजील जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कमजोर मांग तथा अंतरराष्ट्रीय ऑयल मार्केट में ईरान की एंट्री से भारत के लिए क्रूड ऑयल की प्राइस काफी घट चुकी हैं। जुलाई 2014 में क्रूड 106 डॉलर प्रति बैरल था, जो जनवरी 2016 में घटकर 26 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। पिछले 15 महीनों में क्रूड के दाम में 75 फीसदी कमी आई है। बावजूद इसके भारत में अभी भी उपभोक्ता पेट्रोल और डीजल के लिए वैश्विक दामों की तुलना में दोगुना भुगतान कर रहे हैं। 15 फरवरी को एक बार फिर तेल कंपनियां कीमतों की समीक्षा करने वाली हैं, लेकिन लगता नहीं है कि इस बार भी उपभोक्ताओं को क्रूड में आई गिरावट का कुछ ज्यादा फायदा मिलेगा। क्रूड ऑयल की कीमतों में आई इतनी ज्यादा गिरावट के बावजूद इसका फायदा आम उपभोक्ताओं को क्यों नहीं मिल रहा है, इसके पीछे कई कारण हैं।
एक्साइज ड्यूटी ने बिगाड़ा खेल
ग्लोबल क्रूड ऑयल की प्राइस 11 साल के निचले स्तर पर है और केंद्र व राज्य सरकारें अपना रेवेन्यू बढ़ाने के लिए लगातार एक्साइज ड्यूटी और वैल्यू एडेड टैक्स बढ़ा रही हैं, इसकी वजह से रिटेल उपभोक्ताओं के लिए फ्यूल की कीमत अधिक बनी हुई हैं। हालांकि, भारत अपनी कुल ईंधन जरूरत को पूरा करने के लिए 80 फीसदी से ज्यादा क्रूड का इंपोर्ट करता है, जिसका सीधा मतलब है कि ग्लोबल स्तर पर आने वाली इस गिरावट का सीधा फायदा रिटेल पेट्रोल और डीजल कीमतों पर दिखना चाहिए, लेकिन भारतीय उपभोक्ता अभी भी पेट्रोल और डीजल के लिए ग्लोबल रेट की तुलना में दोगुना ज्यादा भुगतान कर रहे हैं।
टैक्स, कंपनियों का प्रॉफिट और कमीशन
इंडियास्पेंड एनालिसिस के मुताबिक तीन राज्यों असम, उत्तर प्रदेश और गुजरात में पेट्रोल और डीजल की रिटेल प्राइस चालू वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान मामूली 10 फीसदी घटी हैं, जबकि इस दौरान क्रूड ऑयल की कीमतें 50 फीसदी से ज्यादा घट चुकी हैं। उदाहरण के लिए, यूपी में पेट्रोल प्राइस 2 लीटर प्रति लीटर बढ़ी है, जबकि समान अवधि में ग्लोबल ऑयल प्राइस घटकर आधी कीमत पर आ गया है।
तस्वीरों में देखिए क्रूड से जुड़े फैक्ट्स
Facts of Crude oil
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भारत में ईंधन की कीमत अभी भी ज्यादा है क्योंकि ऑयल मार्केटिंग कंपनियां जैसे इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड इसमें अपना मार्जिन जोड़ती हैं, केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी लगाती है, राज्य सरकारें अपना टैक्स (वैल्यू एडेड) लगाती हैं और डीलर्स (पेट्रोल पंप) का कमीशन भी इसमें जोड़ा जाता है। इन सबको मिलाकर ही रिटेल प्राइस तय किया जाता है, जिसका भुगतान आम उपभोक्ता करता है।
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तीन महीने में एक्साइज ड्यूटी पांच बार बढ़ाई जा चुकी है, डीजल ड्यूटी 140 फीसदी बढ़ी
आप ईंधन की वास्तविक कीमत की तुलना में डीजल और पेट्रोल पर टैक्स का ज्यादा भुगतान कर रहे हैं। डीजल पर सेंट्रल एक्साइज पेट्रोल से भी ज्यादा है। अप्रैल 2014 में डीजल पर एक्साइज ड्यूटी 4.52 रुपए प्रति लीटर थी, जो फरवरी 2016 में बढ़कर 17.33 रुपए प्रति लीटर हो गई है।
रिटेल उपभोक्ता पेट्रोल और डीजल पर इसकी वास्तविक कीमत से ज्यादा टैक्स का भुगतान कर रहे हैं। आप एक लीटर पेट्रोल की जो कीमत दे रहे हैं, उसमें 57 फीसदी हिस्सा सरकार का टैक्स है। 44 रुपए प्रति लीटर डीजल में 55 फीसदी हिस्सा टैक्स का है। यदि इन दो सालों में डीजल पर एक्साइज ड्यूटी न बढ़ाई जाती तो आज डीजल की रिटेल कीमत 32 रुपए प्रति लीटर होती। तेल कीमतों का सीधा असर माल के ट्रांसपोर्टेशन पर पड़ता है, जिससे उपभोक्ता महंगाई सीधे तौर पर जुड़ी हुई है।