लखनऊ। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद घरेलू पटाखा इंडस्ट्री की दिवाली सूनी नजर आ रही है। पटाखों के अवैध निर्माण और बिक्री पर सख्त पाबंदी और चीन निर्मित पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद इस दीपावली पर घरेलू पटाखा इंडस्ट्री में चमक पैदा नहीं हो सकी है। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक पटाखों की मांग में 35 से 40 फीसदी तक की भारी गिरावट आई है। दरअसल घरेलू बाजार चीनी पटाखों की बड़े पैमाने पर उपलब्धता ने इंडस्ट्री की कमर तोड़ दी है। हालांकि, इस दिवाली आम उपभोक्ता को पटाखों के लिए 10 से 15 फीसदी कम कीमत चुकानी पड़ेगी।
सरकार की तमाम कोशिशें नाकाम
एसोचैम ने देश में पटाखा इंडस्ट्री हब के नाम से मशहूर शिवकाशी समेत 10 बड़े शहरों में करीब 250 पटाखा निर्माताओं और थोक और खुदरा विक्रेताओं के बीच एक सर्वे कराया है। सर्वे के के अनुसार सरकार की तमाम कोशिशों का अपेक्षित असर घरेलू इंडस्ट्री पर नहीं पड़ा है। सर्वे के मुताबिक, बाजार में अब भी चीनी पटाखों का भारी स्टॉक है, जिसे जमाखोरों की मदद से खासकर लखनऊ, अहमदाबाद, दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, जयपुर और मुम्बई में अवैध रूप से बेचा जा रहा है।
35 से 40 फीसदी घटी मांग
एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डी. एस. रावत ने बताया कि पटाखों की मांग में 35 से 40 फीसदी तक की भारी गिरावट आई है। साथ ही चीनी पटाखों के अवैध रूप से भारी आयात से भारतीय पटाखा उद्योग को करीब एक हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इसके अलावा पटाखों की कीमतों में 10 से 15 फीसदी की बढ़ोत्तरी ने भी नकारात्मक असर डाला है। उद्योग मण्डल द्वारा अहमदाबाद, बेंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली-एनसीआर, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुम्बई और पुणे में कराए गए इस सर्वे के अनुसार पटाखे जलाने पर स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे असर के खिलाफ जागरूकता फैलाए जाने से लोगों का पटाखों से मोह कम हुआ है।
चीनी पटाखे की वजह से इंडस्ट्री सूनी
शिवकाशी जिले के 150 पटाखा निर्माताओं ने कहा कि चीनी पटाखों के अवैध रूप से आयात और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत में गिरावट के कारण एल्युमिनियम पाउडर, बरियम नाइट्रेट और अन्य कच्चे माल के आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी का पटाखा इंडस्ट्री पर नकारात्मक असर पड़ा है। साथ ही शिवकाशी में श्रमिकों की खासी किल्लत की वजह से भी पटाखा उत्पादन में गिरावट आई है।