नई दिल्ली: दिसंबर-2019 खत्म हो रहा था और चीन के वुहान क्षेत्र से नोवल कोरोनावायरस का प्रकोप शुरू हुआ। इस वायरस ने अभूतपूर्व तरीके से पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में ले लिया। दुनियाभर में कई देशों ने वायरस का प्रसार रोकने के लिए लॉकडाउन के सख्त उपाय किए हैं और सभी कामकाज ठप है। लेकिन, दक्षिण कोरिया में ऐसा नहीं हुआ। वहां नागरिक सड़कों पर वापस आने लगे हैं। दक्षिण कोरिया में फरवरी के अंत से कोविड-19 के मामलों में तेजी आने लगी थी। 5000 से अधिक संक्रमित सामने आए और एक समय तो चीन के बाहर सबसे ज्यादा केस के मामले में वह सबसे आगे था। तभी चमत्कार हो गया। संक्रमितों की रोजाना सामने आने वाली संख्या में गिरावट आती गई और कुछ ही हफ्तों में हालात बदल गए और संख्या ढलान पर आ गई।
स्वाभाविक है कि प्रश्न तो उठेगा ही कि दक्षिण कोरिया ने लॉकडाउन लागू किए बिना कोरोनावायरस के प्रकोप से कैसे छुटकारा पाया और यह सब कैसे मैनेज किया? दक्षिण कोरिया की कोरोनावायरस से जुड़ी रणनीति तीन प्रमुख मार्गदर्शक सिद्धांतों पर आधारित थी- टेस्ट, ट्रेस और कंटेन। कोरियाई सरकार ने ड्राइव-थ्रू और वॉक-इन टेस्टिंग सेंटर सहित पूरे देश में बड़े पैमाने पर टेस्टिंग सुविधाएं खोलीं। बड़ी संख्या में लोगों के टेस्ट के अलावा दक्षिण कोरिया ने कोविड-19 के खिलाफ आक्रामक तरीके से कॉन्टेक्ट ट्रेस करने के लिए मोबाइल तकनीक का इस्तेमाल किया। जो लोग पॉजीटिव आए, उन्हें अपने मूवमेंट की हिस्ट्री बताने को कहा गया, फिर जीपीएस फोन ट्रैकिंग, सीसीटीवी रिकॉर्ड और यहां तक कि क्रेडिट कार्ड लेन-देन से मदद ली गई। इसने कोरिया को उन हजारों लोगों का टेस्ट करने की अनुमति दी, जो कोरोनावायरस संक्रमित के संपर्क में आए थे।
कोविड -19 के खिलाफ लड़ाई में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग की प्रभावशीलता दक्षिण कोरिया को कोविड-19 महामारी को काबू करने में सफलता मिली और उसकी सक्सेस स्टोरी कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग का महत्व दर्शाती है। अन्य देशों ने भी इसका पालन किया और भारत ने अपना फोकस कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग पर शिफ्ट किया है। सरकार ने वायरस का प्रसार रोकने के लिए आरोग्य सेतु नामक कोरोनावायरस ट्रेसिंग ऐप लॉन्च किया है। सरकार के अलावा भारत में निजी संगठन भी कोविड-19 संक्रमितों से संपर्क में आए लोगों को ट्रैक करने और सबसे प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करने के लिए इनोवेटिव, टेक-इनेबल्ड सॉल्युशन लेकर आए हैं।
गुड़गांव स्थित डेटा मार्केटप्लेस आइसमा एक ऐसा ही स्टार्टअप है जो मोबाइल-बेस्ड डेटा मार्केटप्लेस एप्लिकेशन से कॉन्टेक्ट ट्रेस करने की सुविधा का सॉल्युशन लाया है। जियो-लोकेशन शेयरिंग और हेल्थ-मैपिंग फीचर से लैस यह ऐप यूजर्स को नियमित रूप से अपने प्रमुख स्वास्थ्य डेटा को दर्ज करने की अनुमति देता है। यह विसंगतियों की पहचान कर उन्हें मैप करने में मदद कर सकता है। जब किसी की पहचान हो जाती है तो वह यूजर और संबंधित अधिकारियों को निवारक कदम उठाने के लिए सूचित कर सकता है।
यह ऐप एडवांस एल्गोरिदम से संचालित होता है ताकि यूजर जियो-लोकेशन की जांच कर कोविड-19 कॉन्टेक्ट्स के केस को आइसोलेट कर सके। फिर संबंधित अधिकारियों के साथ-साथ यूज़र को भी अलर्ट कर सके। इसके अलावा यूजर को यह हाई-केस डेंसिटी जियोग्राफी की स्थिति में अलर्ट भी करता है। आवश्यकता पड़ने पर यह जानकारी यूजर के साथ-साथ संबंधित अधिकारियों को भी दी जाती है और अन्य परिस्थितियों में इसे गुमनाम ही रखा जाता है। डेटा शेयर करने की अनुमति देने पर आइसमा से रिवॉर्ड भी मिलते हैं और यह यूजर्स के लिए अद्वितीय और विन-विन सिचुएशन है।
ग्रामीण भारत में कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग को सक्षम करना
अन्य कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग ऐप्स के विपरीत आइसमा कोरोनावायरस प्रकोप को सीमित करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण का इस्तेमाल करता है। अन्य टेक्नोलॉजी-बेस्ड सॉल्युशंस के मुकाबले आइसमा ऐप का बड़ा फायदा यह है कि फीचर फोन भी इसका उपयोग कर सकते हैं। इसका मतलब है कि यह ऐप भारत के ग्रामीण हिस्सों के लिए कारगर है जहां अधिकांश आबादी आज भी फीचर फोन पर निर्भर है। कोरोनोवायरस के मामले ग्रामीण भारत में तुलनात्मक रूप से कम हैं, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग व्यवहार की कमी, शिक्षा के निम्न स्तर और सीमित आर्थिक लाभ के कारण महामारी का प्रसार रोकने के लिए सर्वोत्तम व्यवहार अपनाना एक गंभीर चुनौती है।
इस परिदृश्य को देखते हुए आइसमा ऐप टेलीकॉम ऑपरेटरों और सरकारों के कोरोनावायरस के खिलाफ महत्वपूर्ण निवारक उपायों में समर्थन देकर अपना प्रभाव साबित कर सकता है। ऐप की रिवार्ड-बेस्ड सुविधा भी उसकी व्यापक स्वीकृति का मार्ग प्रशस्त करती है। चूंकि, भारत में कोविड-19 मामले लगातार बढ़ रहे हैं, डिजिटल कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग नए मामलों को कम करने और कोरोनावायरस कर्व को फ्लैट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। हालांकि, अकेले सरकार कोविड-19 का प्रकोप नहीं रोक सकती। आइसमा जैसी निजी कंपनियां मजबूत समर्थन करेंगी, जिससे अधिकारियों और चिकित्सा पेशेवरों को वायरस फैलने से रोकने में मदद मिलेगी, खासकर ग्रामीण भारत में।