नई दिल्ली। देश में कोयले की किल्लत जैसी कोई स्थिति नहीं है, वहीं बिजली संयंत्रों में कोयला स्टॉक की स्थिति अगले 2 से 3 हफ्ते में सामान्य हो जायेगी। सरकार के सूत्रों ने ये जानकारी दी है। सूत्रों की माने तो भले ही प्रदेश मौजूदा संकट में केन्द्र पर जिम्मेदारी डालने की कोशिश कर रहे हों लेकिन सच्चाई ये है कि प्रदेशों के अपने रवैये से पावर प्लांट के कोयला स्टॉक में गिरावट देखने को मिली है।
कोयले की सप्लाई की क्या है स्थिति
सरकारी सूत्र के मुताबिक मांग को देखते हुए कोयले की कोई कमी नहीं है। पावर प्लांट से जितनी मांग आ रही है उतनी आपूर्ति की जा रही है। पिछले 4 दिनों से पावर प्लांट में स्टॉक बढ़ना शुरू हो गया है। उम्मीद है कि 15-20 दिनों से लेकर एक माह में स्टॉक सामान्य हो जायेंगे। सूत्र ने जानकारी दी कि अगले 5 से 7 दिन में 20 लाख टन कोयला प्रतिदिन की सप्लाई शुरू हो जायेगी। अभी तक 15.7 लाख टन कोयले का उत्पादन प्रतिदिन हो रहा था जिसे बढ़ाकर 19.4 लाख टन कर दिया गया है। जल्दी ही कोयले की 20 लाख टन प्रतिदिन की सप्लाई शुरू होगी । पावर प्लांट तक कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये रेलवे की साढ़े तीन सौ रैक की उपलब्धता कर दी गयी है। फिलहाल 294 रैक का इस्तेमाल हो रहा है।
राज्यों के रवैये से भी बिगड़ी बात
सूत्रों के मुताबिक मौजूदा समस्या के कई कारण है। इसमें एक अहम कारण राज्यों का अपना रवैया भी है। कोल इंडिया के बार बार कहने के बावजूद राज्यों ने समय पर कोयले का स्टॉक नहीं लिया। आग जैसे जोखिमों की वजह से कोल इंडिया एक सीमा में ही स्टॉक रखती है। समय पर कोयले का स्टॉक तैयार करने के लिये राज्यों को कई चिट्ठियां लिखी गयीं, वहीं मॉनसून की बारिश शुरू होने से काफी पहले स्टॉक उठाने के लिये राजस्थान सहित अन्य राज्यों को कहा गया लेकिन राज्यों ने स्टॉक नहीं उठाया। खास बात ये है कि राजस्थान जैसे कई राज्य स्वयं काफी सीमित खनन करते हैं। वहीं जब अचानक विदेशी बाजारों में कीमतों में तेजी देखने को मिली तो राज्यों ने भी अपनी तरफ से मांग बढ़ा दी। जिससे आपूर्ति पर असर पड़ा। वहीं आर्थिक तेजी के चलते कोयले की डिमांड लगातर बढ़ रही है। हालांकि राज्यों ने इस पर भी काम नहीं किया । उदाहरण के लिये झारखंड में एक बड़े खदान की फाइल पर मुख्यमंत्री की मंजूरी नहीं मिल रही है। खदान के लिये सारी मंजूरी हो चुकी है सिर्फ़ राज्य सरकार की मंजूरी बाकी है।
राज्यों के बकाये से कोल इंडिया की योजनाओं पर असर
सूत्र के मुताबिक राज्य खुद कोयले की बढ़ती मांग को लेकर कदम नही उठा रहे हैं। हालांकि कोल इंडिया से लिये कोयले का बकाया चुकाने में उनके द्वारा की गयी देरी देश की प्रमुख कोल कंपनी की भविष्य की योजनाओं पर असर डालती है। राज्यों को कोल इंडिया के 19 हजार करोड़ रुपये चुकाने है। इसमें से राजस्थान को 278 करोड़ रूपया देना है। वहीं महाराष्ट्र को 2600 करोड़ रुपये, तमिलनाडु को 1100 करोड़, पश्चिम बंगाल को 2000 करोड़, पंजाब को 1200 करोड़ रूपये, मध्यप्रदेश को 1000 करोड़ रुपये और कर्नाटक को 23 करोड़ रुपये चुकाने हैं।
और क्या हैं कोल संकट की वजहें
सूत्रों के अनुसार राज्यों द्वारा समय पर स्टॉक न रखने के साथ साथ मौजूदा कोयला संकट की कई वजहें है जिसमें से विदेशी बाजारों में कोयले की बढ़ती कीमत भी शामिल है। देश मे कई पावर प्लांट विदेशी कोल को मिक्स करते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कीमत काफी बढ़ गयी ,तो इन प्लांट ने कोल मंगाना बंद कर दिया । इससे विदेशी कोयले का आयात 12 प्रतिशत कम हुआ। इस अंतर को कम करने के लिये घरेलू कोयले पर आधारित पावर प्लांट ने 24 प्रतिशत ज्यादा उत्पादन किया। इसके साथ ही मॉनसून की वापसी के दौरान अत्यधिक बारिश से उत्पादन पर असर पड़ा। वहीं महामारी के असर से बाहर निकलती अर्थव्यवस्था में बढ़ती बिजली की मांग ने भी कोयले की खपत बढ़ाने में योगदान दिया।
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