नई दिल्ली। कोयला ब्लाक घोटाला से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही एक विशेष अदालत ने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के पास यह मानने की कोई वजह नहीं थी कि तत्कालीन कोयला सचिव एच सी गुप्ता ने उनके समक्ष एक ऐसी कंपनी को मध्य प्रदेश में कोयला ब्लॉक आवंटित करने की सिफारिश की थी जो उस समय आवंटन के नियमों को पूरा नहीं करती थी।
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विशेष जज भरत पराशर ने गुप्ता को मध्य प्रदेश में थेसगोरा-बी रुद्रपुरी कोयला ब्लॉक कमल स्पॉन्ज स्टील एवं पावर लि. (केएसएसपीएल) को आवंटित करने में अनियमितताओं का दोषी ठहराया है। न्यायमूर्ति ने कहा कि तत्कालीन कोयला सचिव ने पूर्व प्रधानमंत्री के समक्ष गलत तथ्य रखे। उस समय सिंह के पास कोयला मंत्रालय का भी प्रभार था। उन्हें जांच समिति की सिफारिशों के आधार पर ही कदम उठाना था। गुप्ता इस समिति के चेयरमैन थे।
अदालत ने कहा कि यह मानने की कोई वजह नहीं है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री यह समझते कि दिशानिर्देशों का अनुपालन नहीं किया गया है। अदालत ने कहा कि सिंह ने जांच समिति की सिफारिशों पर इस मान्यता के आधार पर विचार किया कि कोयला मंत्रालय में आवेदनों की उनकी पात्रता के हिसाब से जांच की गई होगी और समिति ने दिशानिर्देशों का पूरी तरह अनुपालन किया होगा।
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अदालत ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री को कोयला मंत्री के रूप में जांच समिति की सिफारिशों की फाइल भेजते समय किसी भी अधिकारी ने कहीं पर यह उल्लेख नहीं किया कि आवेदनों की उनकी पात्रता तथा पूर्णता के लिए जांच नहीं की गई है। गुप्ता 31 दिसंबर 2005 से नवंबर 2008 तक कोयला सचिव रहे थे। अदालत ने इस कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितताओं के लिए गुप्ता के साथ कोयला मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव के एस क्रोफा और तत्कालीन निदेशक के सी समारिया को दोषी ठहराया है।