नई दिल्ली। नए साल में चीन के लिए कुछ भी नया नहीं है। 2015 की ही तरह शेयर बाजार में गिरावट, कमोडिटी बाजार में मंदी, अर्थव्यवस्था में सुस्ती और सरकार की ओर से बड़े-बड़े बूस्टर डोज इस साल के शुरुआत में भी देखने को मिले। मसलन, सोमवार और गुरुवार को 7 फीसदी की बड़ी गिरावट के बाद शेयर बाजार में काम बंद कर दिया गया, अर्थव्यव्स्था को सहारा देने के लिए मंगलवार को वहां के सेंट्रल बैंक ने अब तक की सबसे बड़ी राशि बाजार में डाली है। यही वजह है कि नए साल के पहले हफ्ते में ही दुनिया के बड़ी इन्वेस्मेंट फर्म बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच ने 2016 में चीन के प्रमुख शंघाई कम्पोजिट इंडेक्स में 27 फीसदी गिरावट की बात कही है। ग्लोबलाइजेशन के दौर में चीन के शेयर बाजार में गिरावट का यह अनुमान भारत के लिहाज से और भी अहम हो जाता है और चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती भारत के लिए गहरे मायने रखती है।
चीन की मंदी भारत के लिए वरदान
कोटक म्यूचुअल फंड के एमडी नीलेश शाह ने कहा कि भारत को चीन से खुद को अलग करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि चीन की सुस्ती को भारत एक सुनहरे मौके के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। बस जरूरत है कि हम दुनिया को यह बता सकें की मारुति जैसी कंपनियों को हमने बनाया है, जो कि अपनी मूल कंपनी से बेहतर काम कर रही है। क्रेडिट सुइस के एनालिस्ट रॉबर्ट पार्कर ने कहा कि भारत के लिए डाउनसाइड रिस्क बहुत कम है। ग्लोबल स्तर पर कमोडिटी की कीमतों में आई गिरावट का फायदा भारत को मिल रहा है। हालांकि, उन्होंने भी कहा कि वैश्विक संकेत सकारात्मक नहीं हैं।
विकसित देशों पर होगा मंदी का असर
एनालिस्टों के मुताबिक चीन की मंदी का असर भारत की वजाये विकसित देशों पर ज्यादा पड़ेगा। 2015 में चीन और भारत के बीच 67 अरब डॉलर का कारोबार हुआ है, जबकि चीन और अमेरिका के बीच यह आकड़ा 596 अरब डॉलर है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका खास असर नहीं पड़ेगा। इसके अलावा भारत एक घरेलू खपत अर्थव्यवस्था है। चीन में मंदी से ग्लोबल स्तर पर कमोडिटी की कीमतों में गिरावट आएगी, जो कि भारत के लिए फायदेमंद है।
भारतीय बाजार में विदेशी निवेशक लगाएंगे पैसा
चीन के शेयर बाजार में गिरावट की संभावनाओं को देखते हुए निवेश एक बार फिर भारतीय बाजार का रुख कर सकते हैं। नीलेश शाह के मुताबिक मंदी से भारतीय बाजार को फायदा मिलेगा। उन्होंने कहा कि सरकार पॉलिसी रिफॉर्म पर काम कर रही है। वहीं, अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर अभी अटकले खत्म नहीं हुई हैं, ऐसे में निवेशकों के पास विकल्प के तौर पर केवल भारत ही बचता है।