नई दिल्ली। अमेरिका में पढ़ाई के लिए हर साल भारत के मुकाबले चीन से दोगुने से भी ज्यादा छात्र जाते हैं लेकिन इसके बावजूद दुनिया की बड़ी अमेरिकी कंपनियों में CEO ज्यादातर भारतीय बन रहे हैं न की चीन के लोग। चीन आजकल इसी सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहा है कि अमेरिकी कंपनियों में चीनियों मुकाबले ज्यादा भारतीय CEO क्यों बनते जा रहे हैं?
चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपे लेख के मुताबिक भारत के तमिलनाडू में जन्मे सुंदर पिचई 2015 से अमेरिकी कंपनी Google के CEO हैं, तेलंगाना में जन्मे सत्या नादेला 2014 से Microsoft में CEO हैं। इन दोनो के अलावा अमेरिकी कंपनी SanDisk, Adobe Systems, PepsiCo, Harman International और CogniZant में भी CEO भारतीय मूल के ही लोग हैं, किसी बड़ी अमेरिकी कंपनी में शायद ही कोई चीनी नागरिक CEO बना हो, ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख में सवाल पूछा है कि भारतीयों के मुकाबले चीनी लोग क्यों बहुराष्ट्रीय कंपनियों के CEO बनने में पीछे हैं?
इसके मुकाबले अमेरिका में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या की तुलना अगर चीनी छात्रों की संख्या से की जाए तो चीन के मुकाबले आधे से भी कम भारतीय छात्र अमेरिका पढ़ने जाते हैं। 2016-17 के दौरान चीन से अमेरिका को 350755 छात्र पढ़ने के लिए गए थे जबकि उस दौरान भारत से 185000 छात्र अमेरिका में पढ़ाई के लिए गए।
सवाल का जवाब जानने के लिए ग्लोबल टाइम्स ने अमेरिका में काम करने वाले दो ऐसे कारोबारियों से बात की जिनमें एक भारतीय है और दूसरा चीनी, अखबार के मुताबिक दोनो लोगो ने बताया कि भारतीयों का स्वभाव ऐसा है कि वह आसानी से किसी भी संस्कृति को अपना लेते हैं और अमेरिका में काम करने के इच्छुक रहते हैं जबकि दूसरी तरफ चीन के छात्र अमेरिका में पढ़कर अपने देश में काम करने को ज्यादा तरजीह देते हैं।
ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक उन्होंने इस मुद्दे पर कई और जानकारों से भी बात की जिन्होंने बताया कि ज्यादातर भारतीय अमेरिकी टेक कंपनियों में लगभग एक जैसे काम का रास्ता चुनते हैं, वह कंपनी में बतौर इंजिनियर शुरुआत करते हैं और उसके बाद प्रोडक्ट मैनेजर बनते हैं, अलग-अलग कंपनियों और अलग-अलग प्रोडक्ट पर काम करने से उनकी कारोबार करने की समझ बढ़ती है और वह मैनेजमेंट पोस्ट तक पहुंचने में कामयाब रहते हैं।