नई दिल्ली। कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ ने माल एवं सेवा कर (जीएसटी) राजस्व में कमी की भरपाई के लिए केंद्र के कर्ज लेने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। इसके तहत राज्य को विशेष माध्यम से 3,109 करोड़ रुपये मिलेंगे। वित्त मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को बयान में कहा, ‘‘छत्तीसगढ़ सरकार ने जीएसटी क्रियान्वयन से राजस्व की कमी को पूरा करने के लिए विकल्प-1 को स्वीकार करने की सूचना दी है। अब इस विकल्प को चुनने वाले राज्यों की संख्या 27 हो गई है। तीन केंद्र शासित प्रदेशों (दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, पुडुचेरी) ने भी विकल्प-1 को चुना है।''
इसके साथ ही अब सिर्फ झारखंड ऐसा राज्य बचा है जिसने इस प्रस्ताव पर निर्णय नहीं किया है। विकल्प-1 का चयन करने वाले राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को भारत सरकार की विशेष सुविधा के तहत जीएसटी क्रियान्वयन से हुई राजस्व की कमी की भरपाई की जा रही है। केंद्र ने पहले ही राज्यों की ओर से पांच किस्तों में 30,000 करोड़ रुपये उधार लिए हैं और 26 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों को 23 अक्टूबर, दो नवंबर, नौ नवंबर, 23 नवंबर और एक दिसंबर को यह राशि वितरित की जा चुकी है। उधारी के अगले चक्र से छत्तीसगढ़ को इसके तहत पैसा मिलना शुरू होगा। विकल्प-एक का चयन करने वाले राज्यों को जीएसटी के क्रियान्यन से हुए नुकसान की भरपाई के लिए कर्ज लेने की विशेष सुविधा दी जाएगी। साथ ही इस विकल्प को स्वीकार करने पर राज्यों को आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत राज्य सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 0.50 प्रतिशत की अंतिम किस्त का कर्ज बिना किसी शर्त के लेने की अनुमति होगी। इस मिशन के तहत राज्य जीएसडीपी का कुल दो प्रतिशत अतिरिक्त कर्ज जुटा सकते हैं। छत्तीसगढ़ द्वारा विकल्प-1 का चयन करने के बाद उसे केंद्र सरकार की ओर से राज्य जीएसडीपी का 0.5 प्रतिशत यानी 1,792 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज जुटाने की भी अनुमति मिल गई है।
इससे पहले केंद्र सरकार ने अगस्त में राज्यों को दो विकल्प दिये थे। पहले विकल्प के तहत रिजर्व बैंक के द्वारा 97 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के लिये विशेष सुविधा दिये जाने, तथा दूसरे विकल्प के तहत पूरे 2.35 लाख करोड़ रुपये बाजार से जुटाने का प्रस्ताव है। केंद्र सरकार का कहना है कि जीएसटी क्षतिपूर्ति राजस्व में अनुमानित कमी में महज 97 हजार करोड़ रुपये के लिये जीएसटी क्रियान्वयन जिम्मेदार है, जबकि शेष कमी का कारण कोरोना वायरस महामारी है। राज्यों ने रकम जुटाने के लिए पहले विकल्प को चुना है।