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सार्वजनिक परिवहन को प्रोस्‍ताहित करने के लिए आधुनिक बस टर्मिनलों की लागत का 3.5% बोझ उठाएगा केंद्र : गडकरी

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि राज्यों के आधुनिक बस टर्मिनलों की लागत का आंशिक बोझ केंद्र सरकार उठाने को तैयार है।

Manish Mishra
Published on: October 01, 2017 17:56 IST
सार्वजनिक परिवहन को प्रोस्‍ताहित करने के लिए आधुनिक बस टर्मिनलों की लागत का 3.5% बोझ उठाएगा केंद्र : गडकरी- India TV Paisa
सार्वजनिक परिवहन को प्रोस्‍ताहित करने के लिए आधुनिक बस टर्मिनलों की लागत का 3.5% बोझ उठाएगा केंद्र : गडकरी

नई दिल्ली। राज्यों द्वारा स्थापित किए जाने वाले आधुनिक बस टर्मिनलों की लागत का आंशिक बोझ केंद्र सरकार उठाने को तैयार है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन के तहत हम इस लागत का कुछ बोझ उठा सकते हैं। इसी महीने राज्यों के परिवहन मंत्री वडोदरा के केंद्रीय बस डिपो गए है। इसे देश का पहला अंतरराष्ट्रीय स्तर का बस टर्मिनल कहा जा रहा है।

गडकरी ने कहा कि देश में 2,000 से 2,500 बस टर्मिनल हैं। राज्यों के पास जमीन है जहां वे सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) आधार पर बस टर्मिनल बना सकते हैं। डिजाइनिंग, मॉडलिंग और निगरानी के लिए हमने लागत का 3.5 प्रतिशत का बोझ उठाने की पेशकश की है। इसे एक प्रतिशत और बढ़ाया जा सकता है।

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उन्होंने कहा कि पूरे देश में वडोदरा, अहमदाबाद और सूरत जैसे बस टर्मिनल बनाए जा सकते हैं। इस बारे में राज्यों का रुख सकारात्मक है। इससे पहले 19 सितंबर को राज्यों के परिवहन मंत्री वडोदरा बस टर्मिनल देखने गए थे। इसके अलावा मंत्रियों को लंदन परिवहन प्राधिकरण के मॉडल का प्रस्तुतीकरण भी दिखाया गया था।

गडकरी ने कहा कि विश्‍व बैंक और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से बातचीत की जा रही है जिससे भारत लंदन परिवहन प्राधिकरण मॉडल को दोहरा सके। वहां सभी सार्वजनिक परिवहन की बसों को लग्जरी बसों से बदला जा सके और आम आदमी मौजूदा किरायों से 40 प्रतिशत कम अदा कर उनमें यात्रा कर सकें।

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गडकरी ने कहा कि देश में वाहनों की बढ़ती संख्या पर अंकुश लगाने की जरूरत है। हमारा वाहन वृद्धि दर 22 प्रतिशत है। यदि यही रफ्तार कायम रहती है तो हमें प्रत्येक तीसरे साल एक राष्ट्रीय राजमार्ग लेन बनानी पड़ेगी। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक लेन जोड़ने की लागत 80,000 करोड़ रुपए बैठेगी, जो व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने कहा कि इसका एकमात्र समाधान सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहन देना है। इसके लिए भी वैकल्पिक ईंधनों मसलन मेथानॉल, इथेनॉल और इलेक्ट्रिक का इस्तेमाल करना है।

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