नयी दिल्ली: केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने शनिवार को कहा कि भारत को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में सहकारिता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। शाह ने कहा कि केंद्र जल्द ही एक नई सहकारी नीति लेकर आएगा और सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए राज्यों के साथ मिलकर काम करेगा। अमित शाह केंद्रीय गृह मंत्री भी हैं। उन्होंने यह भी घोषणा की कि अगले पांच वर्ष में प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पीएसी) की संख्या बढ़ाकर तीन लाख की जाएगी। अभी पीएसी की संख्या लगभग 65,000 है।
इसके अलावा, सरकार एक राष्ट्रीय सहकारी विश्वविद्यालय स्थापित करने के अलावा सहकारी सामान्य सेवा केंद्र, राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने की दिशा में काम कर रही है। वह यहां पहले राष्ट्रीय सहकारिता सम्मेलन में बोल रहे थे। सहकारिता मंत्रालय का गठन इसी साल जुलाई में किया गया था। विभिन्न सहकारी समितियों के 2,100 से अधिक प्रतिनिधियों और लगभग छह करोड़ ऑनलाइन प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि कुछ लोगों को आश्चर्य है कि केंद्र ने यह नया मंत्रालय क्यों बनाया क्योंकि सहकारिता राज्य का विषय है।
शाह ने कहा कि इस पर कानूनी प्रतिक्रिया हो सकती है, लेकिन वह इस बहस में नहीं पड़ना चाहते। उन्होंने कहा, ‘‘मैं राज्य और केन्द्र के झगड़े में पड़ना नहीं चाहता, इसका कानूनी जवाब आराम से दिया जा सकता है।’’ उन्होंने जोर देकर कहा कि केंद्र राज्यों के साथ सहयोग करेगा और ‘कोई टकराव नहीं होगा’। उन्होंने कहा, ‘‘सहकारिता आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए हम सभी राज्यों के साथ मिलकर काम करेंगे।’’ उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र को मजबूत और आधुनिक बनाने के लिए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया है। यह कहते हुए कि प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में सहकारी समितियों को जीवित रहने की आवश्यकता है, मंत्री ने कहा कि प्रगतिशील भारत के 75 साल पूरे होने का जश्न मनाने के मौके पर सरकार की 'आजादी का अमृत महोत्सव' पहल के हिस्से के रूप में एक नई सहकारी नीति लाई जाएगी।
प्रस्तावित नयी सहकारी नीति पर शाह ने कहा कि वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा एक नीति लाई गई थी, और अब नरेंद्र मोदी सरकार एक नयी नीति पर काम शुरू करेगी। इसके अलावा सरकार बहु-राज्य सहकारिता कानून (मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव एक्ट) में संशोधन करने के साथ-साथ देश में पीएसी का आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण करने जा रही है। उन्होंने कहा, ‘‘हमने हर दूसरे गांव में एक पीएसी रखने का लक्ष्य रखा है। अगले पांच वर्षों में पीएसी की संख्या बढ़ाकर तीन लाख की जाएगी।’’
मंत्री ने यह भी कहा कि पीएसी को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए एक योजना तैयार की जाएगी। जिला सहकारी बैंक और नाबार्ड के साथ पीएसी की लेखा प्रणाली को जोड़ने के लिए एक स्थानीय भाषा में एक सॉफ्टवेयर तैयार किया जाएगा। सरकार पीएसी को किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाने की दिशा में भी काम कर रही है। साथ ही पीएसी को पेशेवर बनाने की जरूरत है, जिसके लिए सदस्यों के कौशल विकास पर ध्यान दिया जाएगा। सहकारी ऋण समितियों को भी अधिक क्षेत्रों में सुदृढ़ एवं विस्तारित किया जायेगा।
उन्होंने कहा कि प्राथमिकता वाले क्षेत्र को कर्ज देने में पीएसी की भूमिका बढ़ाई जाएगी। इस क्षेत्र को मजबूत करने के लिए उठाए जाने वाले अन्य कदमों की जानकारी देने के अलावा, शाह ने कहा कि सरकार, सहकारी सामान्य सेवा केंद्र, राष्ट्रीय डेटाबेस और राष्ट्रीय सहकारी विश्वविद्यालय स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है। कराधान के स्तर पर और अन्य मसलों पर सहकारिता के सामने आने वाली समस्याओं का जिक्र करते हुए, शाह ने कहा कि वह इन चिंताओं से अवगत हैं और उन्होंने आश्वासन दिया कि उनके साथ कोई अन्याय नहीं होगा। सहकारिता आंदोलन को पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक बताते हुए शाह ने कहा, ‘‘हो सकता है कि सहकारी समितियों के पास अधिक वित्तीय ताकत ना हो लेकिन हमारी सदस्यता शक्ति इतनी अधिक है कि हमें कोई हरा नहीं सकता। कुछ नया शुरू करने का समय आ गया है।’’
उन्होंने कहा कि सहकारिता क्षेत्र देश के विकास में बहुत योगदान दे सकता है तथा भारत को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा सकता है। उन्होंने कहा कि कई देशों में सहकारिता कानून के माध्यम से अस्तित्व में आई, लेकिन भारत में यह संस्कृति का हिस्सा है। उन्होंने कहा, यह उधार में ली गई अवधारणा नहीं है और यह क्षेत्र कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकता।’’ उन्होंने कहा कि इफ्को, अमूल, लिज्जत पापड़ और कृभको जैसी सहकारी समितियों ने दूध और उर्वरक जैसे क्षेत्रों में एक मील का पत्थर हासिल किया है, लेकिन बीज, खाद्य प्रसंस्करण जैसे कई अन्य क्षेत्र हैं जहां सहकारी समितियां क्षमता का दोहन कर सकती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘(इस सेक्टर की) उपेक्षा का समय समाप्त हो गया है और इसे प्राथमिकता देने का समय शुरू हो गया है। आइए मिलकर काम करें।’’ उन्होंने कहा कि देश के करोड़ों किसानों, पिछड़े लोगों, दलितों और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सहकारिता के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। भारत के लिए सहकारिता कोई नई बात नहीं है। वर्ष 1904 के बाद से, इस क्षेत्र ने कई मील के पत्थर हासिल किए हैं और कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन यह कभी नहीं रुका।
उन्होंने सहकारी समितियों से इस आंदोलन को कभी नहीं रोकने का आग्रह किया। मंत्री ने कहा कि देश के 91 प्रतिशत गांवों में किसी न किसी रूप में सहकारी समितियां काम कर रही हैं। पूरे भारत में 8.55 लाख पंजीकृत सहकारी समितियां, 8.5 लाख क्रेडिट सहकारी समितियां और सात लाख गैर-ऋण सहकारी समितियां और 17 से अधिक राष्ट्रीय सहकारी समितियां हैं। उन्होंने कहा कि सहकारी समितियों की सफलता चार चीजों पर निर्भर करेगी- दृढ़ संकल्प, स्पष्ट इरादा, कड़ी मेहनत और एकता के साथ काम करना।