नई दिल्ली। मुख्य आर्थिक सलाहकार के वी सुब्रमणियम का कहना है कि लॉकडाउन खुलने के बाद आर्थिक गतिविधियों में तेजी आने और मानसून अच्छा रहने से आने वाले दिनों में खाद्य मुद्रास्फीति कम होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि कोविड- 19 की दूसरी लहर से निपटने के लिये इस साल अप्रैल- मई के दौरान कई राज्यों में लगाये गये लॉकडाउन के कारण खाद्य पदार्थों के दाम बढ़े हैं। सुब्रमणियम ने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति की ऊंची दर से जनसंख्या के एक बड़े वर्ग पर प्रभाव नहीं पड़ा है क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त राशन दिया जा रहा है।
सुब्रमणियम ने पीटीआई-भाषा के साथ साक्षात्कार में कहा, ‘‘हाल में खाद्य मुद्रास्फीति में जो वृद्धि हुई है वह पिछले दिनों लगाये गये प्रतिबंधों की वजह से हुई है हमने पिछले साल भी यह देखा है जब लॉकडाउन लगाया गया और उसके बाद आपूर्ति स्थिति प्रभावित हुई और खाद्य मुद्रास्फीति पर असर पड़ा जिससे खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति पर इसका असर दिखाई दिया। इसलिये मेरा मानना है कि इसका (लॉकडाउन) योगदान रहा है और अब जबकि कई प्रतिबंधों को हटाया जा रहा है, मेरा मानना है कि खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी आयेगी।’’ खुदरा मुद्रास्फीति मई माह के दौरान रिजर्व बैंक के संतोषजनक छह प्रतिशत के दायरे से ऊपर निकल गई। इससे केन्द्रीय बैंक और सरकार दोनों पर ही खाद्य कीमतों में कमी लाने का दबाव बढ़ गया। सरकार ने इस माह की शुरुआत में खाद्य तेलों के आयात शुल्क मूल्य में 112 डालर प्रति टन तक की कमी की है। सुब्रमणियम ने कहा कि प्रतिबंधों में ढील दिये जाने के साथ ही अच्छे मानसून का भी खाद्य कीमतों पर अनुकूल असर होगा।
पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम से खुदरा मुद्रास्फीति पर असर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इसका कोई बड़ा असर नहीं होगा क्योंकि ईंधन का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति में केवल 7.94 प्रतिशत ही वजन है। ‘‘इसका कुल मिलाकर प्रभाव ऊंचा नहीं होगा, लेकिन यदि आप पेट्रोल और डीजल के दाम और खासतौर से परिवहन लागत में डीजल के दाम के योगदान पर गौर करते हैं तो खाद्य मुद्रास्फीति और अन्य वस्तुओं के परिवहन पर इसका असर शुरुआती प्रभाव के अनुरूप ही होगा।’’ खाद्य तेल और प्रोटीन युक्त वस्तुओं के बढ़ते दाम के चलते मई में खुदरा मुद्रास्फीति छह माह के उच्चस्तर 6.3 प्रतिशत पर पहुंच गई। सरकार ने रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत पर रखने को कहा है। इसमें यह दो प्रतिशत नीचे अथवा दो प्रतिशत ऊपर तक जा सकती है। खुदरा मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित महंगाई दर अप्रैल में 4.23 प्रतिशत से बढ़कर मई में 6.23 प्रतिशत की छह माह की ऊंचाई पर पहुंच गई। वहीं खाद्य मुद्रास्फीति इस दौरान 1.96 प्रतिशत से बढ़कर मई में 5.01 प्रतिशत पर पहुंच गई। इससे पहले खुदरा मुद्रास्फीति नवंबर 2020 में 6.93 प्रतिशत तक गई थी।
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