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डेबिट और क्रेडिट कार्ड से खरीदारी पड़ सकती है आपकी जेब पर भारी, देना होता है एक्‍स्‍ट्रा चार्ज

सरकार विमुद्रीकरण के बाद डेबिट-क्रेडिट कार्ड ट्रांजैक्‍शन को बढ़ावा देने की कोशिश तो कर रही है लेकिन यह नकद लेन-देन के मुकाबले महंगा पड़ रहा है।

Manish Mishra
Updated on: November 30, 2016 15:53 IST
नई दिल्‍ली। सरकार विमुद्रीकरण (Demonetisation) के बाद कैशलेस ट्रांजैक्‍शन को बढ़ावा देने की कोशिश तो कर रही है लेकिन यह नकद लेन-देन के मुकाबले महंगा पड़ रहा है। विमुद्रीकरण के बाद से कैशलेस पेमेंट करने से घरेलू बजट में इजाफा ही हुआ है। दरअसल, कैशलेस ट्रांजैक्‍शन हमेशा ही बिना शुल्‍क के नहीं होता।

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95 फीसदी ट्रांजैक्‍शन नकद में किए जाते हैं

  • जेएम फाइनेंशियल की एक रिपोर्ट पर भरोसा करें तो देश में उपभोक्‍ता लेन-देन के कुल वॉल्‍यूम का लगभग 95 फीसदी नकद में किया जाता है।
  • कुल लेन-देन के मूल्‍य का 65 फीसदी कैश में ही किया जाता है। भारत में कैश और जीडीपी का अनुपात 12 फीसदी से अधिक है।
  • भारतीय रिजर्व बैंक के मार्च 2016 के आंकड़ों के अनुसार, भारत की कुल मुद्रा में 86.4 फीसदी हिस्‍सेदारी 500 और 1000 रुपए के पुरानो नोटों की थी।
  • विमुद्रीकरण के बाद नोटों की कमी के कारण रोजमर्रा के खर्च प्रभावित हो रहे हैं। एटीएम और बैंकों में लगने वाली लंबी लाइनें इस बात को साबित करती हैं कि नकदी की लोगों को कितनी जरूरत है।

तस्‍वीरों में देखिए ऐसी-ऐसी जगहों पर भी स्‍वीकार्य हैं पेटीएम के जरिए भुगतान

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कैशलेस ट्रांजैक्‍शन में यहां देने होते हैं अतिरिक्‍त शुल्‍क

  • अगर आप ऑनलाइन टिकट बुक करते हैं तो आपको 20-40 रुपए सर्विस शुल्‍क के अलावा टैक्‍स भी देना होता है।
  • पेट्रोल पंप से फ्यूल लेते समय अगर आप सरचार्ज वेवर वाले कार्ड के अलावा दूसरा कार्ड इस्‍तेमाल करते हैं तो सरचार्ज लगेगा ही।
  • आम तौर पर डेबिट कार्ड पर यह चार्ज 1 फीसदी तक होता है जबकि क्रेडिट कार्ड पर यह 2.5 फीसदी तक लगाया जाता है।
  • जब भी कोई मर्चेंट डेबिट या क्रेडिट कार्ड से पेमेंट स्‍वीकार करता है तो उसे अतिरिक्‍त लागत झेलनी पड़ती है जिसका बोझ वह ग्राहकों पर डालता है।
  • घरेलू सामान आप ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं और इसकी पेमेंट भी आप अपने डेबिट या क्रेडिट कार्ड से कर सकते हैं। लेकिन यहां भी कुछ पेंच हैं।
  • एक निश्चित राशि से कम का सामान खरीदने पर आपको डिलिवरी चार्ज देना होता है। यह डिजिटल पेमेंट का नुकसान ही है।
  • आप कम खर्च में नकद भुगतान कर ऑटो से कहीं भी आ जा सकते हैं लेकिन डिजिटल पेमेंट कर अपने गंतव्‍य तक पहुंचने के लिए आपको टैक्‍सी का सहारा लेना होता है जो महंगा पड़ता है।

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गांवों में नहीं है कैशलेस पेमेंट का प्रचलन

  • आप महानगरों में रहते हैं तो चलिए डेबिट या क्रेडिट कार्ड के अलावा मर्चेंट को डिजिटल वॉलेट जैसे पेटीएम या मोबिक्विक से भुगतान कर सकते हैं। यहां डिजिटल पेमेंट ज्‍यादा प्रचलित हैं।
  • गांवों में कैशलेस ट्रांजैक्‍शन चुनौतीपूर्ण है। अन्‍र्स्‍ट एंड यंग की एक रिपोर्ट की मानें तो प्रति व्‍यक्ति के हिसाब से भारत में प्‍वाइंट ऑफ सेल टर्मिनल (PoS) या कार्ड स्‍वाइपिंग मशीन विश्‍व में सबसे कम है।
  • छोटे-छोटे भुगतान के लिए डिजिटल वॉलेट या कार्ड का इस्‍तेमाल हर जगह संभव नहीं है।

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