नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी की घोषणा से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली से विचार-विमर्श किया था या नहीं, इस बारे में वित्त मंत्रालय ने जानकारी देने से मना कर दिया।
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इससे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भी इस तरह का दावा किया है कि नोटबंदी की घोषणा से पहले वित्त मंत्री और मुख्य आर्थिक सलाहकार से मशविरा करने की जानकारी देना सूचना के अधिकार कानून RTI के तहत सूचना के दायरे में नहीं आता है। सूचना का अधिकार कानून के तहत सूचना से आशय किसी भी रूप में उपलब्ध ऐसी जानकारी से है जो सार्वजनिक प्राधिकार के नियंत्रण में है।
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- प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने वित्त मंत्रालय से RTI के जरिए इस संबंध में जानकारी मांगी थी।
- जिसके जवाब में कहा गया है कि इस प्रश्न के संबंध में दस्तावेज हैं लेकिन इन्हें सूचना का अधिकार कानून के तहत सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है।
- वित्त मंत्रालय ने RTI कानून की धारा 81A के तहत इस संबंध में जानकारी देने से मना कर दिया।
- हालांकि, उसने यह बताने से मना कर दिया कि यह सूचना इस धारा के तहत किस तरह आती है।
- RTI अधिनियम की यह धारा ऐसी जानकारियों को सार्वजनिक करने से रोकने की अनुमति देती है जिसे जारी किए जाने से भारत की संप्रभुता और अखंडता, सुरक्षा, रणनीति, राज्य के वैग्यानिक और आर्थिक हित, विदेशों के साथ संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हो और किसी अपराध को शह देती हो।
- प्रक्रिया के अनुसार जानकारी के लिए पहली अपील संबंधित मंत्रालय में दायर की जाती है जिसे एक वरिष्ठ अधिकारी देखता है। इसमें यदि जानकारी नहीं मिल पाती है तो दूसरी अपील केंद्रीय सूचना आयोग के पास भेजी जाती है जो RTI कानून की शीर्ष संस्था है।
- नोटबंद से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने से इनकार करने वालों में वित्त मंत्रालय के भी शामिल होने के बाद अब इस जानकारी से सीधे जुड़े तीनों संस्थान प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक ने इस संबंध में जानकारी सार्वजनिक किए जाने से मना कर दिया है।
- RTI अधिनियम में कुछ ऐसे विशेष प्रावधान भी हैं जिनके तहत सार्वजनिक करने से छूट प्राप्त रिकार्ड को भी सार्वजनिक किया जा सकता है। य
- ह काम ऐसी स्थिति में ही हो सकता है जब बचाव पक्ष को होने वाले नुकसान पर उसे सार्वजनिक करने की स्थिति में होने वाला जनहित भारी पड़ता हो।
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने कहा कि
सार्वजनिक हित की धारा तब लागू होती है जब आवदेक द्वारा मांगी गई सूचना पर ऐसी जानकारी से छूट का प्रावधान लागू होता हो। लेकिन इस मामले में मांगी गई सूचना पर जानकारी देने से छूट का कोई प्रावधान लगता ही नहीं होता है।