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ONGC, केयर्न इंडिया की कच्चे तेल पर उपकर आधा करने की मांग

सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) तथा निजी क्षेत्र की केयर्न इंडिया ने घरेलू कच्चे तेल के उत्पादन पर उपकर घटाकर आधा करने की मांग की है।

Abhishek Shrivastava
Updated on: July 26, 2016 19:40 IST
ONGC और केयर्न इंडिया की कच्चे तेल पर उपकर आधा करने की मांग, कंपनियों पर पड़ रहा है बोझ- India TV Paisa
ONGC और केयर्न इंडिया की कच्चे तेल पर उपकर आधा करने की मांग, कंपनियों पर पड़ रहा है बोझ

नई दिल्ली। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) तथा निजी क्षेत्र की केयर्न इंडिया ने घरेलू कच्चे तेल के उत्पादन पर उपकर घटाकर आधा करने की मांग की है। इन कंपनियों का कहना है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट में दरें कम करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन जो बदलाव किया गया उसके बाद वास्तव में उनका बोझ बढ़ गया है।

ONGC फरवरी, 2016 तक अपने प्रमुख मुंबई हाई सहित अन्य सभी क्षेत्रों के कच्चे तेल पर 4,500 रुपए प्रति टन का उपकर अदा कर रही है। बजट 2016-17 में जेटली ने उपकर को विशेष शुल्क से बदलकर कच्चे तेल के मूल्यानुसार 20 फीसदी कर दिया था। हालांकि, मौजूदा कीमतों के हिसाब से ओएनजीसी तथा केयर्न प्रतिटन 4,500 रुपए से अधिक का उपकर अदा कर रही हैं।

मामले से जुड़े सूत्रों ने कहा कि दोनों कंपनियों ने सरकार को एक ज्ञापन देकर बताया है कि कच्चे तेल के दाम 44 डॉलर प्रति बैरल के भाव से ऊपर जाने की स्थिति में इस पर मूल्यानुसार 20 फीसदी उपकर 4,500 रुपए प्रति टन के बराबर ही बैठता है। कच्चे तेल के दाम इस स्तर से ऊपर पहुंचने की स्थिति में इस पूरी कवायद, जो कि घरेलू तेल उत्पादकों को राहत देने के लिहाज से शुरू की गई थी, वास्तव में महंगी पड़ रही है और कंपनियों को अधिक कर देना होता है।

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देश में तेल उद्योग विकास उपकर सबसे पहले 1970 के दशक में 60 रुपए प्रति टन के हिसाब से लगाया गया था। अगले दशकों में इसमें कई बार बढ़ोतरी हुई। 1991 में जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला उस समय यह 900 रुपए प्रति टन था। 2002 में यह 1,800 रुपए प्रति टन और 2006 में इसे बढ़ाकर 2,500 रुपए प्रति टन कर दिया गया। उस समय कच्चे तेल का अंतरराष्ट्रीय मूल्य 60 डॉलर प्रति बैरल था। वर्ष 2012 में इसे बढ़ाकर 4,500 रुपए प्रति टन किया गया। उस समय तेल का दाम 100 डॉलर प्रति बैरल था। सूत्रों के अनुसार यह शुल्क उस समय के तेल मूल्य के लिहाज से 10 फीसदी से अधिक नहीं पड़ता था। अब जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के दाम दशक के निचले स्तर पर आ गए और नई तेल खोज में निवेश को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं, ऐसे में जेटली ने मूल्यानुसार 20 फीसदी उपकर का प्रस्ताव किया। इस कदम का मकसद तेल खोज कंपनियों को राहत देना था, लेकिन इसका उलटा प्रभाव हुआ।

ओएनजीसी और अन्य कंपनियों ने उपकर को घटाकर 8 से 10 फीसदी करने की मांग की है, क्योंकि उपकर को तर्कसंगत बनाने की बजट प्रक्रिया का उद्देश्य मौजूदा निचले दामों पर भी पूरा नहीं हो पा रहा है। उपकर के अलावा अन्य सांविधिक शुल्क मसलन रॉयल्टी (10 से 20 फीसदी), वैट (5 फीसदी) और चुंगी (4.5 फीसदी) भी कच्चे तेल के उत्पादन तथा बिक्री पर अदा करना होता है।

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