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चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा जीडीपी के एक फीसदी से नीचे आ सकता है: सुब्रमणियम

अरविंद सुब्रमणियम ने कहा, वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम कम रहने से वर्ष 2016-17 में चालू खाते का घाटा जीडीपी के एक फीसदी से नीचे रह सकता है।

Abhishek Shrivastava
Published : June 29, 2016 20:47 IST
चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा जीडीपी के एक फीसदी से नीचे आ सकता है: सुब्रमण्‍यम
चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा जीडीपी के एक फीसदी से नीचे आ सकता है: सुब्रमण्‍यम

हैदराबाद। वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्‍यम ने कहा कि वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम कम रहने से वर्ष 2016-17 में चालू खाते का घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के एक फीसदी से नीचे रह सकता है। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर आने (ब्रेक्जिट) के निर्णय के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में नरमी बढ़ेगी, जिसका भारत पर भी थोड़ा प्रभाव पड़ सकता है।

सुब्रमण्‍यम ने कहा, आर्थिक सर्वेक्षण में हमने वृद्धि दर के सात से साढ़े सात फीसदी के बीच बने रहने का अनुमान लगाया था और मेरा मोटे तौर पर मानना है कि हम इस पर बने रहेंगे। जैसा कि मैंने कहा कि ब्रेक्जिट, अच्छा मानसून इत्यादि अन्य कारक भी काम करेंगे तो देखते हैं कि यह कैसे काम करता है। अभी इस समय हम सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के आकलन में संशोधन करने नहीं जा रहे हैं। उन्होंने कहा, चालू खाता घाटे का प्रबंधन किया जा सकेगा। उम्मीद है कि यह सकल घरेलू उत्पाद के एक फीसदी की सीमा में रहेगा। विशेषतौर पर कच्चे तेल के दामों में कमी आना इसके लिए अच्छा है। चालू खाता घाटा विदेशी मुद्रा के अंत:प्रवाह और बहिर्प्रवाह के बीच का शुद्ध अंतर होता है।

अरविंद सुब्रमण्‍यम ने कहा, मेरा मानना है कि जुलाई में मानसून ठीक से आगे बढ़ेगा। जुलाई में हमें अच्छी बारिश होने की उम्मीद है। यही वह समय है जब सभी तरह की रोपाई होती है। इस मानसून के साथ हमें अच्छी खरीफ की फसल होने की उम्मीद है। मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि सोने के दाम बढ़ने के बावजूद चालू खाते के घाटे पर ज्यादा प्रभाव नहीं होगा क्योंकि सोने का कुल आयात तेल के आयात की तुलना में आधे से भी कम है और इसलिए यह एक सकारात्मक प्रभाव है। वह यहां हैदराबाद विश्वविद्यालय में एक सम्मेलन को संबोधित करने आए थे। उन्होंने कहा कि ब्रेक्जिट से विश्व अर्थव्यवस्था में नरमी बढ सकती है और भारत पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि लोग बड़ी उत्सुकता से अमेरिका में चुनावों की ओर देख रहे हैं कि क्या वहां भी ऐसा ही कुछ घट सकता है।

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