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Inside Story: जानिए सरकार और ज्वैलर्स की टकराव के बीच असल मुद्दा क्या?

सरकार द्वारा गोल्‍ड और डायमंड ज्‍वैलरी पर एक फीसदी एक्‍साइज ड्यूटी लगाने के फैसले के विरोध में देशभर के ज्‍वैलर्स हड़ताल पर हैं।

Dharmender Chaudhary
Updated : March 16, 2016 9:15 IST
Inside Story: जानिए सरकार और ज्वैलर्स की टकराव के बीच असल मुद्दा क्या?
Inside Story: जानिए सरकार और ज्वैलर्स की टकराव के बीच असल मुद्दा क्या?

नई दिल्ली। सरकार द्वारा गोल्‍ड और डायमंड ज्‍वैलरी पर एक फीसदी एक्‍साइज ड्यूटी लगाने के फैसले के विरोध में देशभर के ज्‍वैलर्स हड़ताल पर हैं। आज हड़ताल का 15वां दिन है और अब तक 98,000 करोड़ रुपए का नुकसान कारोबारियों को हो चुका है। इस सेक्‍टर में 18 लाख छोटे श्रमिक काम करते हैं, जो हड़ताल की वजह से दाने-दाने को मोहताज हैं। सरकार के तमाम समझाने के बावजूद ज्‍वैलर्स अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। पर सरकार भी सख्‍त है और कह चुकी है कि वह अपना फैसला वापस नहीं लेगी। इंडस्ट्री के जानकार मानते हैं कि एक्साइज ड्यूटी से छोटे कारोबारियों का कोई लेना देना नहीं है, लेकिन बड़े ज्वैलर्स इस मामले में उनको घसीट रहे हैं। सरकार ने साफ कर दिया है कि नया नियम 12 करोड़ रुपए से अधिक कारोबार करने वालों पर लागू होगा। ऐसे में आप खुद अंदाजा लगाइए कि आपके शहर में ऐसे कितने ज्वैलर हैं जिनका कारोबार प्रति महीने एक करोड़ रुपए से अधिक है? इस बीच कोई का रास्‍ता निकल नहीं रहा है, तो क्‍या ज्‍वैलर्स काम ऐसे ही बंद रखकर और आर्थिक नुकसान झेलेंगे। इतने बड़े नुकसान को झेलने की आखिर वजह क्‍या है?

सरकार का फैसला    

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2016-17 के बजट में चांदी को छोड़कर सोने और हीरे से बने आभूषणों पर बिना इनपुट क्रेडिट के एक फीसदी और इनपुट क्रेडिट के साथ 12.5 फीसदी की दर से सेंट्रल एक्‍साइज ड्यूटी लगाने का प्रस्ताव किया है।  इससे पहले सरकार सोने व हीरे की दो लाख रुपए या इससे अधिक की खरीदारी पर पैन कार्ड अनिवार्य कर चुकी है। ये दो फैसले देश में सोने के कारोबार में पारदर्शिता लाने और काले धन के प्रवाह को कम करने के उद्देश्‍य से लिए गए हैं। देश में रियल एस्‍टेट के बाद सबसे ज्‍यादा काला धन सोने में लगाया जाता है। तो क्‍या काले धन के उपयोग पर लगाम कसना ही ज्‍वैलर्स की परेशानी है?

ज्‍वैलर्स का विरोध

ऑल इंडिया जेम्स एंड ज्वेलरी ट्रेड फेडरेशन के चेयरमैन श्रीधर जीवी के मुताबिक हड़ताल की वजह से हर दिन जेम्स एंड ज्वेलरी सेक्टर को 7,000 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हो रहा है। ऐसे में अगर आप 14 दिन का हिसाब लगाते हैं तो यह नुकसान करीब 98,000 करोड़ रुपए बैठता है। ज्‍वैलर्स का कहना है कि एक्‍साइज ड्यूटी से इंस्पेक्टर राज वापस लौटेगा। ज्वैलरी फेडरेशन के डायरेक्टर अशोक मीनावाला का कहना कि इससे निवेश के लिए सोने की मांग घटेगी और बिक्री में 25 फीसदी गिरावट आएगी। अखिल भारतीय सर्राफा एसोसिएशन के उपाध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार जैन का कहना है कि सरकार के इस फैसले से छोटे कारोबारी प्रभावित होंगे। इससे पहले भी 2005 और 2012 में जब एक्‍साइज ड्यूटी लगाने का प्रयास तात्‍कालीन सरकार द्वारा किया गया लेकिन ज्‍वैलर्स के आगे सरकार को झुकना पड़ा।

सरकार की दलील

वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने स्‍पष्‍ट किया है कि केवल 12 करोड़ रुपए से अधिक सालाना कारोबार करने वाले सर्राफा कारोबारियों पर ही एक फीसदी एक्‍साइज ड्यूटी लगाई जाएगी। इसके अलावा कोई भी अधिकारी सर्राफा कारोबारियों के यहां नहीं जाएगा। यह पूरी प्रक्रिया (आभूषण विनिर्माताओं के ओर से) स्व-आकलन और स्वैच्छिक अनुपालन पर आधारित है। वित्‍त मंत्री ने कहा कि यह सोने के कारोबार को जीएसटी के साथ जोड़ने की प्रक्रिया का हिस्सा है। इसलिए इससे पीछे नहीं हटा जा सकता है।

ज्वैलर्स की हड़ताल की असली वजह ये तो नहीं

केंद्रिय वित्त मंत्री ने ज्वैलर्स के हर सवाल का उत्तर दिया है और उन्‍हें हर तरह से मनाने की कोशिश की है, बावजूद इसके ज्‍वैलर्स अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। जानकारों की मानें तो ज्‍वैलर्स को सरकार के इन फैसलों से कारोबार कम होने की नहीं बल्कि काले धन पर रोक लगने की चिंता सता रही है। एक फीसदी एक्‍साइज ड्यूटी से ज्‍वैलरी की कीमत मुश्किल से दो या ढाई फीसदी बढ़ेगी, जो कि मामूली होगी। वैसे ही दो लाख रुपए से अधिक की ज्‍वैलरी खरीदने वाले टैक्‍सपेयर्स को पैन नंबर बताने में भी कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। वर्तमान में काले धन से सोना खरीदा कर उसे आसानी से सुरक्षित बनाया जा रहा है, क्‍योंकि सोने के कारोबार पर कोई नियमन नहीं है, कोई भी कितना भी सोना आसानी से खरीद या बेच सकता है, इसकी कोई सीमा नहीं है। वहीं सरकार का सख्त होना लाजमी है, क्योंकि कालेधन पर लगाम लगाना पहली प्राथमिकता है।

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