नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली बुधवार को अपना चौथा और सबसे चुनौतीपूर्ण बजट (#Budget2017) पेश करेंगे। माना जा रहा है कि नोटबंदी से हुई परेशानी को दूर करने के लिए जेटली 2017-18 के बजट में कुछ कर राहत और अन्य प्रोत्साहन दे सकते हैं जिससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिल सके। जेटली ऐसे समय बजट पेश करने जा रहे हैं जब उनके सामने वित्तीय घाटे को भी काबू में रखना सबसे बड़ी चुनौती है क्योंकि क्रूड के दाम लगातार बढ़ रहे हैं और नौकरियां पैदा करना उनकी अब प्राथमिकता है।
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पहली बार आम बजट में होगा ये बदलाव
- करीब 92 साल बाद यह पहला मौका होगा जब रेल बजट अलग से पेश नहीं किया जाएगा।
- पिछले साल ही केंद्रीय कैबिनेट से रेल बजट के आम बजट में विलय की मंजूरी मिली थी।
- इस लिहाज से रेलवे के आय-व्यय का ब्योरा आम बजट 2017-18 का ही हिस्सा होगा।
- साथ ही, फरवरी के अंतिम दिन बजट पेश करने की दशकों पुरानी परिपाटी भी इस बार बदल गई है।
- आपको बात दें कि सरकार ने रेल बजट के विलय का फैसला नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश पर किया था।
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तस्वीरों में देखिए रेलवे से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
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बजट से उम्मीदें
- सबसे पहली उम्मीद यह है कि जेटली इस बार आयकर छूट की सीमा को 2.5 लाख से बढ़ाकर तीन लाख रुपए करेंगे।
- वह फील गुड का वातावरण पैदा करने के लिए लोगों के हाथ में अधिक पैसा देना चाहेंगे।
- इससे मांग और आपूर्ति श्रृंखला और ऋण वृद्धि पर पड़े प्रतिकूल असर को कम किया जा सकेगा।
- साथ ही वह आवास ऋण पर दिए गए ब्याज पर कटौती की सीमा को दो लाख रुपए से बढ़ाकर ढाई लाख रुपए कर सकते हैं।
- साथ ही चिकित्सा के लिए भी अधिक छूट दी जा सकती है।
उद्योग विशेषज्ञों और कर अधिकारियों का कहना है कि कर छूट के अलावा बजट में सार्वभौमिक मूल आमदनी की घोषणा हो सकती है। हालांकि, कॉरपोरेट कर की दर को 30 प्रतिशत से नीचे लाना आसान नहीं होगा। क्योंकि सरकार के चालू वित्त वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद की 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर के अनुमान में नोटबंदी से पैदा हुए दिक्कतों को शामिल नहीं किया गया है।
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वित्तीय घाटा काबू में रखना वित्त मंत्री के सामने बड़ी चुनौती
- चालू वित्त वर्ष के लिए राजस्व संग्रहण लक्ष्य के पार जा सकता है, लेकिन इसमें संदेह है कि जेटली 2017-18 में कर प्राप्तियों में कोई उल्लेखनीय वृद्धि का अनुमान लगाएंगे।
- इसके अलावा कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भी उनको चिंतित कर रही हैं।
- ऐसे में उनके पास सामाजिक और बुनियादी ढांचा योजनाओं में कुछ बड़ा करने की गुंजाइश काफी कम है।