मुंबई: इंडिकैश ब्रांड से व्हाइट लेबल ATM चलाने वाली टाटा कम्युनिकेशंस पेमेंट सोल्यूशंस का मानना है कि बैंक द्वारा परिचालित ATM (ब्राउन लेबल) जल्दी ही इतिहास की बात होगी क्योंकि उद्योग लगभग पूरी तरह तीसरे पक्ष द्वारा चालित परिचालन की ओर कदम बढ़ा चुका है। व्हाइट लेबल एटीएम खंड में टाटा समूह की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से अधिक है। कंपनी के 20 राज्यों में 7,000 मशीन लगे हैं। वहीं कंपनी के ब्राउन लेबल मशीन की संख्या 13,000 से अधिक है।
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इन 7,000 ATM में 4,000 ऐसे क्षेत्र में लगे हैं जहां बैंक सुविधा नहीं है। देश में कुल 2 लाख ATM में कंपनी की बाजार हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से अधिक है। कुल ATM में 1.9 लाख ब्राउन लेबल ATM हैं। कंपनी का व्हाइट लेबल ATM पिछले एक साल में करीब दोगुना हो गया है। फिलहाल व्हाइट लेबल ATM की संख्या 11,000 है। ये ATM तीन कंपनियों ने लगाए हैं जिन्हें रिजर्व बैंक से इस प्रकार के मशीन चलाने की अनुमति मिली है। व्हाइट लेबल ATM टाटा कम्युनिकेंशस पेमेंट सोल्यूशंस, मुत्थुट फाइनेंस तथा प्रिज्म पेमेंट सर्विसेज जैसी कंपनियां परिचालित कर रही हैं। किसी भी बैंक के ग्राहक इसकी सेवा ले सकते हैं। वहीं ब्राउन लेबल ATM बैंकों का होता है लेकिन इसका परिचालन और रखरखाव टाटा कंपनी जैसे तीसरे पक्ष करते हैं।
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टाटा कम्युनिकेशंस पेमेंट सोल्यूशंस के मुख्य कार्यकारी संजीव पटेल का कहना है कि पिछले करीब एक साल से कई बैंकों खासकर निजी क्षेत्र के बैंकों से ATM लगाने के लिए कई अनुबंध मिले हैं। निजी क्षेत्र ने इस दौरान एक भी मशीन खुद से नहीं लगाया। यहां तक कि सरकारी बैंक भी कोई बड़ी संख्या में ATM नहीं लगा रहे हैं।
संजीव पटेल ने कहा, मेरा मानना है कि अगर यह प्रवृत्ति बनी रही तो जल्दी ही ब्राउन लेबल ATM इतिहास बन जाएगा। पटेल ने दलील देते हुए कहा कि बैंकों द्वारा स्वयं से ATM लगाने का कोई मतलब नहीं बनता है। खुद से इस प्रकार के मशीन लगाना बैंकों के लिए महंगा सौदा है। उन्होंने कहा, दूसरा व्हाइट लेबल ATM लगाने की लागत करीब 5 लाख रुपए है जबकि ब्राउन लेबल ATM की लागत कई गुना अधिक है क्योंकि इसकी लागत में किराए की बड़ी भूमिका है। अपने कारोबार के बारे में पटेल ने कहा कि आने वाले समय में इसमें शानदार मौके हैं। ये मौके 21 भुगतान एवं लघु वित्त बैंक से मिलेंगे जो अगले 12 महीनों में अपना कारोबार शुरू करेंगे।