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Brexit: ब्रिटिश अर्थव्‍यवस्‍था के लिए महत्‍वपूर्ण है भारत, ब्रिटेन का EU से बाहर निकलना कई मायनों में अच्‍छा

Brexit जनमत संग्रह को साल के सबसे बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक इससे भारत के लिए फायदा और नुकसान दोनों ही हैं।

Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Updated : June 24, 2016 8:30 IST
नई दिल्‍ली। ब्रेक्जिट जनमत संग्रह को इस साल के सबसे बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है। तमाम अर्थशास्‍त्रियों और विशेषज्ञों के मुताबिक ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन (ईयू) से बाहर निकलने का भारत के लिए फायदा और नुकसान दोनों ही हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यदि ब्रिटेन ईयू से बाहर निकलता है तो यह इस बात की गारंटी हो सकता है कि कमोडिटी और क्रूड ऑयल की कीमतें लंबे समय तक कमजोर बनी रहेंगी। इससे भारत को फायदा होगा। वहीं ब्रिटेन के ईयू से बाहर निकलने पर शेयर बाजार में खलबली मचेगी और यह धराशायी हो जाएगा।

प्रख्‍यात अर्थशास्‍त्री और ब्रिटेन की संसद में हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्‍य मेघनाद देसाई का कहना है-

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में रहने या न रहने पर होने वाले जनमत संग्रह में भारती की रुचि महज शौकिया है। ईयू से बाहर निकलने पर ब्रिटेन तुलनात्‍मक रूप से कमजोर होगा और उसे व्‍यापार तथा निवेश भागीदारों की ज्‍यादा जरूरत होगी। उस स्थिति में भारत ब्रिटिश अर्थव्‍यवस्‍था के लिए एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। लेकिन फि‍र यह स्थिति खुद ब्रिटेन के हित में नहीं होगी। बहरहाल ईयू के भीरत रहे या बाहर, ब्रिटेन को भारत की जरूरत हमेशा रहेगी।

जेपी मोर्गन इंडिया के भारत अयर का कहना है कि-

इसे अगर भारत के परिप्रेक्ष्‍य में देखें तो, ब्रेक्जिट से ग्‍लोबल ग्रोथ कमजोर पड़ेगी और इससे कमोडिटी कीमतों में गिरावट आएगी। इससे भारत की सापेक्ष और निरपेक्ष अपील को बढ़ावा मिलेगा।

फर्स्‍ट ग्‍लोबल के वीसी और ज्‍वाइंट एमडी शंकर शर्मा का इस बारे में कहना है कि-

ब्रेक्जिट के मामले में भरतीय शेयर बाजार पर बड़ी मार पड़ेगी, लेकिन यह लंबी अवधि में भारत की गुलाबी तस्‍वीर पर एक अस्‍थाई चोट होगी। यदि ब्रिटेन बाहर होता है, तो हमें जून और जुलाई में बहुत बुरी तस्‍वीर देखने को मिलेगी। इससे भारत की टाटा ग्रुप समेत कई कंपनियों के रेवेन्‍यू पर भी बुरा असर पड़ेगा, टाटा ग्रुप का ब्रिटेन में बहुत अधिक कारोबारी निवेश है और ब्रिटेन के जरिये यूरोप में भी इसकी अच्‍छी-खासी उपस्थिति है।

इन्‍वेस्‍टमेंट

वर्तमान में भारत ब्रिटेन के लिए दूसरा सबसे बड़ा एफडीआई का स्रोत है। भारत के लिए यूरोप में घुसने का ब्रिटेन एक मात्र दरवाजा है। जिन भारतीय कंपनियों ने ब्रिटेन में अपनी फैक्‍ट्रियां लगाई हैं, उन्‍हें शेष यूरोप में जाने का रास्‍ता यूरोपियन फ्री मार्केट सिस्‍टम के तहत मिला है। यदि ब्रिटेन ईयू से बाहर निकलता है तो भारतीय एफडीआई के लिए ये पहले की तरह आकर्षक गंतव्‍य नहीं रहेगा। इसलिए ब्रिटेन भारत से आने वाली पूंजी को अपने हाथों से नहीं जाने देना चाहेगा। इसलिए ब्रिटेन ईयू से बाहर निकलता है तो उसे भारतीय कंपनियों द्वारा निवेश चालू रखने के लिए उन्‍हें आकर्षित करने के लिए ज्‍यादा मेहतन करनी होगी, उसे टैक्‍स छूट, कम नियामक और अन्‍य वित्‍तीय लाभ के रूप में ज्‍यादा इन्‍सेंटिव ऑफर करने होंगे। यदि ब्रिटेन जटिल ब्‍यूरोक्रेटिक रेगूलेटरी स्‍ट्रक्‍चर वाले ईयू से बाहर निकलता है तो भारतीय कंपनियां ब्रिटेन में एक डीरेगूलेटेड और फ्री मार्केट की उम्‍मीद कर सकती हैं।

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अन्‍य ईयू पार्टनर

यदि ब्रिटेन ईयू से बाहर निकलता है तो भारत यूरोप में प्रवेश करने का अपना दरवाजा खो देगा। इससे भारत को ईयू के अन्‍य देशों के साथ समझौता करना होगा, जो कि लंबी अवधि में एक अच्‍छा परिणाम देगा। भारत पहले ही नीदरलैंड, फ्रांस, जर्मनी और अन्‍य देशों के साथ व्‍यापार बातचीत कर रहा है। नीदरलैंड भारता का टॉप एफडीआई डेस्‍टीनेशन है। ब्रेक्जिट की वजह से भारत पर बड़े ईयू मार्केट में पहुंच बनाने के लिए यूरोपियन यूनियन के अन्‍य देशों के साथ व्‍यापार समझौता करने का दवाब बन सकता है।

भारतीयों की बढ़ेगी डिमांड  

ईयू से बाहर निकलने पर ब्रिटेन नए ट्रेडिंग पार्टनर, पूंजी तथा लेबर का स्रोत खोजने के लिए बेताब होगा। ब्रिटेन को बहुत अधिक संख्‍या में कुशल श्र‍म की आवश्‍यकता होगी और अंग्रेजी बोलने वाली जनसंख्‍या के साथ भारत के लिए यह फायदेमंद होगा। यूरोप से माइग्रेशन न होने की वजह से ब्रिटेन अन्‍य देशों के माइग्रेशन के लिए सक्षम होगा, जो कि भारत के हित में है। इसके साथ ही भारतीयों के लिए ब्रिटेन अध्‍ययन का एक महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। अभी ब्रिटेन यूके और ईयू के छात्रों को रियायत देता है, लेकिन ब्रेक्जिट के बाद यह अन्‍य देशों के छात्रों को यह सुविधा देगा। बहुत से भारतीय छात्रों को ब्रिटेन में पढ़ने के लिए स्‍कॉलरशिप हासिल होने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।

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क्या है Brexit?

Brexit दरअसल, ‘British Exit’ का संक्षिप्त रूप है। इसका इस्तेमाल यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के अलग होने के लिए किया गया है। कुछ वर्ष पहले यूरोजोन से ग्रीस के अलग होने पर Grexit टर्म का इस्तेमाल किया गया था। यूके के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ब्रिटेन और यूरो जोन के अन्य 27 सदस्य देशों के बीच नए समझौतों पर बात करना चाहते हैं। इसके लिए जनमत संग्रह किया जा रहा है, जिसमें लोगों से पूछा गया है क्या वह Brexit के पक्ष में हैं या नहीं। इसके लिए 18 वर्ष या 18 वर्ष से अधिक उम्र के ब्रिटिश, आईरिश या कॉमनवेल्थ देशों के नागरिक वोट डाल सकते हैं। इसके लिए यूके का नागरिक होना अनिवार्य है।

क्या है यूरोपियन यूनियन

ईयू 28 देशों का समूह है। यह एक फ्री ट्रेडिंग जोन है। यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी जीडीपी 18,000 अरब डॉलर है। इसकी जनसंख्या 500 मिलियन यानि कि 50 करोड़ से ज्यादा है। जर्मन चांसलर एंजेला मर्कल ईयू के राज्यों की सबसे शक्तिशाली नेता हैं। ईयू ने अधिकांश मामलों में नेशनल वीटो को खत्म किया है।

क्यों है Brexit महत्वपूर्ण?

Brexit के पक्ष के लोगों का मानना है कि इससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे साथ ही ब्रिटेन अपने मुताबिक खुद के नियम और ट्रेडिंग पार्टनर तय कर सकेगा। वहीं ईयू के पक्ष के लोगों का मानना है कि ब्रिटेन के अलग होने से ईयू और ब्रिटेन दोनों कमजोर हो जाएंगे। इससे कई मामलों पर प्रभाव पड़ेगा।

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