नई दिल्ली। यदि आप यह मानते हैं कि भारत में बोतल बंद पानी सुरक्षित है तो इस पर आप यह खबर पढ़ने के बाद दोबारा विचार कीजिए। देश में बहुत बड़ी संख्या में बोतल बंद पानी के सैंपल नकली पाए गए हैं। 2014-15 में भारत सरकार द्वारा किए गए एक सैंपल टेस्ट में तकरीबन एक तिहाई (31 फीसदी) सैंपल मिलावटी या नकली पाए गए हैं।
केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री रामविलास पासवान ने 3 मई को संसद में बताया कि 2014-15 में पूरे देश से कुल 806 सैंपल एकत्रित किए गए थे। इसमें से 734 सैंपल का विश्लेषण किया गया। 2013-14 में 2,977 सैंपल का परीक्षण किया गया, जिसमें से तकरीबन 20 फीसदी मिलावटी या नकली पाए गए थे।
2014-15 में सबसे ज्यादा मिलावटी या नकली सैंपल वाले राज्यों की सूची
भारत में 5,000 बोतल बंद पानी के मैन्युफैक्चरर्स हैं, जिनके पास ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (बीआईएस) का लाइसेंस है। यूरोमोनिटर के मुताबिक 2015 में भारत का बोतल बंद पानी के उद्योग का आकार 12,100 करोड़ रुपए का था। बाजार हिस्सेदारी के मामले में पांच सबसे बड़ी कंपनियां बिसलरी, कोका कोला, पेप्सिको, पार्ले एग्रो और माणिकचंद हैं, जिनका 61 फीसदी बाजार पर कब्जा है।
कभी सुरक्षित नहीं रहा बोतल बंद पानी
एशिया की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में खाद्य सुरक्षा के प्रति चिंता हाल के महीनों में बढ़ी है, जब लोकप्रिय इंस्टैंट नूडल ब्रांड नेस्ले मैगी में लेड और मोनोसोडियम ग्लूटामैट की मात्रा स्वीकार्य सीमा से अधिक होने का पता चला। भारत में लोकप्रिय बोतल बंद पानी पर किए गए पुराने अध्ययनों में कहा गया है कि वे पूर्णता सुरक्षित नहीं हैं, बावजूद इसके उनके कारोबार पर कोई असर नहीं पड़ा।
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवारमेंट (सीएसई) ने 2003 में किए गए अपने एक अध्ययन में इस मुद्दे को उठाया था। सीएसई ने दिल्ली में बिकने वाले 17 ब्रांड की बोतल का परीक्षण किया था, जिसमें बिसलेरी, बैली, प्योर लाइफ, एक्वाफिना और किनले भी शामिल थे। परीक्षण के उपरांत पाया गया कि इन सैंपल में कीटनाशकों के अवशेष बीआईएस (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) द्वारा तय सीमा से अधिक हैं।
2015 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में बोतल बंद पानी के सैंपल में ब्रोमैट (संभावित कैंसर को जन्म देने वाला तत्व) पाया गया। बीएआरसी ने 18 ब्रांड के 90 सैंपल पर अपना यह अध्ययन किया था।
मुंबई के जसलोक अस्पताल के एक डॉक्टर अल्ताफ पटेल ने 2015 में एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि अधिकांश मामलों में पैकेज्ड बोतल वाटर के लिए ग्राउंट वाटर का उपयोग किया जाता है, जिसमें भारी धातुएं मिली होती हैं और इससे घातक बीमारियां जैसे पागलपन, हृदय रोग के साथ ही साथ हायपरटेंशन हो सकता है। सरकार ने फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड रेगूलेशन 2011 में कठोर नियम बनाए हैं, उदाहरण के तौर पर कंपनियों को 51 जरूरतों को पूरा करना अनिवार्य होता है, जिसमें रंग, स्वाद और नाइट्रेट की उपस्थिति शामिल हैं, लेकिन ऊपर बताए गए आंकड़ों से ये साफ पता चलता है कि कंपनियां सरकार द्वारा तय मानकों का पालन गंभीरता से नहीं कर रही हैं और कुछ हद तक सरकार भी इसके लिए जिम्मेदार है।
Source: Quartz