लंदन। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने देशों के केंद्रीय बैंकों पर अंकुश लगाने के लिए ट्रैफिक लाइट जैसी व्यवस्था किए जाने का प्रस्ताव किया है। उन्होंने कहा कि इन बैंकों को ऐसी मौद्रिक नीति से बचना चाहिए जिससे दूसरी अर्थव्यवस्थाओं पर बुरा असर पड़ता हो। उन्होंने कहा कि भारत भी करीब एक दशक बाद उन्हीं नियमों का पालन कर सकता है।
लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में व्याख्यान देते हुए राजन ने कहा, मुझे इस बात पर कोई शक नहीं है कि इन बातों पर जब तक कोई नीति बनेगी तब तक-यानी अब से अगले करीब दस साल में भारत विश्व की शीर्ष तीन से पांच अर्थव्यवस्थाओं में होगा और हमारी नीति भी उन्हीं नियमों के तहत होगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके राजन ने ट्रैफिक लाइट नियम के बारे में कहा कि जिन नीतियों का दूसरों पर प्रभाव शून्य या सकारात्मक हो उन्हें हरी बत्ती और जिनका असर दूसरों पर नकारात्मक हो सकता है उन्हें लाल बत्ती का ठप्पा दिया जाना चाहिए। जो नीतियां अल्पकाल में कुछ नकारात्मक प्रभाव वाली हों लेकिन वे दीर्घकाल में अच्छा नतीजा दे सकती हों तो उन्हें पीली बत्ती से निर्देशित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति वैश्विक दृष्टि से अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण होनी चाहिए।
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धन की बरसात वाली नीति की व्यावहार्यता पर उठाया सवाल
गवर्नर रघुराम राजन ने हेलीकॉप्टर मनी नीति यानी बाजार में सीधे नकदी की बाढ़ करने की गैर परंपरागत नीति को लेकर केंद्रीय बैंकों में बहस का आह्वान करते हुए इस तरह की नीति के राजनीतिक व आर्थिक लाभों पर सवाल उठाया। उल्लेखनीय है कि हेलीकॉप्टर से धन बरसाने की नीति ऐसी मौद्रिक पहल का नाम है जिसमें केंद्रीय बैंक बड़ी मात्रा में मुद्रा छपवा कर सीधे तौर पर बाजार में वितरित करते हैं या सार्वजनिक परियोजनाओं में निवेश करते हैं। इस समय एक ऐसी काल्पनिक मौद्रिक नीति पर बहस चल रही हो जो शून्य के करीब चल रही ब्याज दरों के मुद्रास्फीति के अतिनिम्न स्तर पर होने के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था में खर्च बढ़ाने तथा आर्थिक वृद्धि बढ़ाने में सहायक हो सके।
राजन ने कहा कि यह सवाल उठाने की जरूरत है कि क्या वैश्विक मौद्रिक नीति सामाधान के बजाय उत्तरोत्तर समस्या का बड़ा हिस्सा बनती जा रही है। उन्होंने कहा, यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि खिड़कियों से धन फेंकना या लाभान्वितों को पहचान कर उन्हें चैक बांटना बहुत से देशों में राजनीतिक रूप से व्यावहारिक होगा या नहीं और क्या इसके आर्थिक रूप से वांछित प्रभाव आएंगे।
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