नई दिल्ली। साल 2020 कोरोना वायरस महामारी की भयावह यादों के साथ विदा हो रहा है। पूरी दुनिया को घरों में कैद कर देने वाला 2020 हमेशा याद रहेगा। 2020 को विदा देते हुए इस समय पूरी दुनिया को कल से शुरू होने वाले नए वर्ष 2021 से बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं। सभी कोरोना वायरस महामारी से छुटकारा पाने के लिए वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। ऐसी संभावना भी है कि शायद 2021 में एक प्रभावी वैक्सीन आ जाएगी और जल्द ही पूरी दुनिया को जानलेवा कोरोना से मुक्ति मिल जाएगी। 2020 की खट्टी-मीठी और रुला देने वाली यादों को एक बार फिर ताजा करते हुए आइए जानते हैं कैसा होगा नया साल 2021।
महामारी के बीच 2020 में छोटे शेयरों ने दिया बड़ा रिटर्न
कोरोना वायरस महामारी के बीच इस साल छोटे शेयरों ने जबर्दस्त वापसी की है और निवेशकों को अच्छा रिटर्न दिया है। पिछले दो साल के दौरान छोटी कंपनियों के शेयरों ने निवेशकों को नकारात्मक रिटर्न या प्रतिफल दिया था। महामारी के दौरान खुदरा निवेशकों की भागीदारी बढ़ी है जिससे स्मॉलकैप सूचकांक इस साल 31 प्रतिशत चढ़ गया। स्मॉलकैप का प्रदर्शन व्यापक बाजार से बेहतर रहा है। शेयर बाजारों के लिए यह साल काफी घटनाक्रमों वाला रहा। महामारी के बीच शेयर बाजार में कभी तेजड़िये तो कभी मंदड़िये हावी रहे। कोविड-19 के शुरुआती चरण में महामारी को लेकर चिंता और लॉकडाउन की वजह से आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होने से मंदड़िये हावी रहे। लेकिन बाद के महीनों में तेजड़ियों ने जबर्दस्त वापसी की। कभी ऊपर और कभी नीचे रहने वाले बाजार के बीच स्मॉलकैप और मिडकैप शेयर बाजार की पसंद रहे।
इस साल 29 दिसंबर तक बीएसई मिडकैप 2,842.99 अंक या 18.99 प्रतिशत चढ़ा है। वहीं स्मॉलकैप में कहीं अधिक बड़ी बढ़त दर्ज हुई और यह 4,268.3 अंक या 31.15 प्रतिशत चढ़ा है। इनकी तुलना में बीएसई सेंसेक्स में 6,359.34 अंक या 15.41 प्रतिशत का लाभ दर्ज हुआ है।
बाजार की चाल से निवेशक रहे हैरान- परेशान
कोविड-19 महामारी के प्रभाव से जहां शेयर बाजार रिकार्ड निचले स्तर पर पहुंच गये वहीं सरकार के अभूतपूर्व राजकोषीय और मौद्रिक प्रोत्साहन उपायों से ये नित नए रिकॉर्ड भी बनाने लगे। बाजार में भारी उतार-चढ़ाव देख निवेशक भी भैचक्के नजर आए। हालांकि, अब निवेशकों की चिंता 2021 में बाजार की चाल को लेकर है। इस साल आई तेजी और आगे बढ़ेगी अथवा बाजार में कोई बड़ा करेक्शन आएगा। पूरे साल बाजार में व्यापक उतार-चढ़ाव देखन को मिला।
मार्च 2020 में चार बड़ी गिरावटें दर्ज की गई, जिसने निवेशकों को अचंभित किया। शेयर बाजार में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट 23 मार्च को आई जब लॉकडाउन की घोषणा से बाजार ने तगड़ी डुबकी लगाई। उस दिन सेंसेक्स 3,934.72 अंक यानी 13.15 प्रतिशत टूटा। सेंसेक्स में सबसे बड़ी एक दिन की तेजी सात अप्रैल को आई। उस दिन सेंसेक्स 2,476.26 अंक मजबूत हुआ।
रिलायंस ने बनाया रिकॉर्ड
रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) पहली भारतीय कंपनी रही जिसका बाजार पूंजीकरण बढ़कर 15 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन के झटके झेल रही थी तब अप्रैल के महीने में मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस की इकाई रिलायंस जियो में दुनिया की जानी मानी कंपनियां हिस्सेदारी खरीद रही थीं। फेसबुक, गूगल, सिल्वर लेक, केकेआर, मुबाडाला और सउदी अरब के सार्वजनिक निवेश कोष ने रिलायंस जियो में हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा की। कंपनी इस साल अब तक 25 अरब डॉलर के करीब निवेश जुटा चुकी है।
रिकॉर्ड 68 लाख नए डीमैट खाते खुले
वर्ष के दौरान एक और उल्लेखनीय बात यह रही कि अप्रैल से अक्ट्रबर 2020 की अवधि में रिकॉर्ड 68 लाख नए डीमैट खाते खोले गए, जबकि समूचे 2019- 20 में 49 लाख डीमैट खाते खुले थे। जो कि पिछले एक दशक में सबसे अधिक थे। विशेषज्ञों के मुताबिक लॉकडाउन के कारण घर पर अधिक समय बिताने के चलते यह स्थिति बनी है। नौकरी और कमाई के नुकसान की भरपाई के लिए घर में रहकर शेयरों में खरीद-फरोख्त की तरफ रूझान बढ़ा।
सोने की चमक ने किया चकाचौंध
सोना हमेशा ही अनिश्चित समय में सुरक्षित निवेश माना गया है। यही वजह है कि कोरोना वायरस महामारी के अनिश्चित दौर में सोना नई ऊंचाईयों पर पहुंचा। बहाहरल, अमेरिकी डॉलर में कमजोरी और नये प्रोत्साहन उपायों की उम्मीद के बीच 2021 में भी सोना 63,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंचने का अनुमान विशेषज्ञों ने व्यक्त किया है। वर्ष 2020 में कोरोना वायरस महामारी के चलते आर्थिक और सामाजिक अनिश्चितताओं के कारण सोना निवेश का एक सुरक्षित विकल्प बनकर उभरा। इस पीली धातु की कीमत अगस्त में एमसीएक्स पर 56,191 रुपये प्रति 10 ग्राम और अंतरराष्ट्रीय बाजार में 2,075 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गई थी। वैश्विक मौद्रिक नीतियों में तेज बदलाव के तहत 2019 के मध्य में कम ब्याज दर और अभूतपूर्व तरलता का दौर शुरू हुआ, जिसने सोने की कीमत को बढ़ावा दिया और निवेशकों का रुझान इसकी ओर बढ़ता गया।
बैंकों के सामने बड़ी चुनौती
नए साल में बैंकों के सामने फंसे कर्ज की समस्या से निपटना मुख्य चुनौती होगी। कई कंपनियों खासतौर से सूक्ष्म, लघु एवं मझौली (एमएसएमई) इकाइयों के समक्ष कोरोना वायरस महामारी से लगे झटके के कारण मजबूती से खड़े रहना संभव नहीं होगा जिसकी वजह से चालू वित्त वर्ष की शुरुआती तिमाहियों के दौरान अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट देखी गई। बैंकों को आने वाले महीनों में कमजोर कर्ज वृद्धि की चुनौती से भी निपटना होगा। निजी क्षेत्र का निवेश इस दौरान कम रहने से कंपनी क्षेत्र में कर्ज वृद्धि पर असर पड़ा है। बैंकिंग तंत्र में नकदी की कमी नहीं है लेकिन इसके बावजूद कंपनी क्षेत्र से कर्ज की मांग धीमी बनी हुई है। बैंकों को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में उम्मीद से बेहतर सुधार के चलते जल्द ही कर्ज मांग ढर्रें पर आएगी।
जीडीपी में आई रिकॉर्ड गिरावट
देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पहली तिमाही के दौरान जहां 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई थी वहीं दूसरी तिमाही में यह काफी तेजी से कम होकर 7.5 प्रतिशत रह गई। लेकिन उद्योग जगत के विश्वास और धारणा में अभी वह मजबूती नहीं दिखाई देती है जो सामान्य तौर पर होती है। पिछले कुछ सालों के दौरान निजी क्षेत्र का निवेश काफी कम बना हुआ है और अर्थव्यवस्था को उठाने का काम सार्वजनिक व्यय के दारोमदार पर टिका है।
बैंको का बढ़ेगा एनपीए
रिजर्व बैंक की जुलाई में जारी की गई वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक इस साल के अंत में बैंकों का सकल एनपीए 12.5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। इस साल मार्च अंत में यह 8.
5 प्रतिशत आंका गया था। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की यदि बात की जाए तो मार्च 2021 में उनका सकल एनपीए बढ़कर 15.2 प्रतिशत तक पहुंच सकता है, जो कि मार्च 2020 में 11.3 प्रतिशत पर था। वहीं निजी बैंकों और विदेशी बैंकों का सकल एनपीए 4.2 प्रतिशत और 2.3 प्रतिशत से बढ़कर क्रमश 7.3 प्रतिशत और 3.9 प्रतिशत हो सकता है।
आईटी क्षेत्र ने बदले हालात
इस साल कोविड-19 ने भले ही मुश्किल हालात पैदा किए हों, लेकिन 191 अरब डॉलर के भारतीय आईटी क्षेत्र ने नए हालात में खुद को ढालते हुये इस दौरान लचीलापन दिखाया और डिजिटल खर्च में बढ़ोतरी के साथ ही अब 2021 में क्षेत्र के लिए अवसरों में वृद्धि की उम्मीद की जा रही है। इस साल की शुरुआत में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी के कारण भारत सहित दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन लागू हुआ। इसने भारतीय आईटी कंपनियों के समक्ष दोहरी चुनौती पेश की ग्राहकों को लगातार सेवाएं कैसे दी जाएं और अपने कर्मचारियों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करें। इंफोसिस, विप्रो और टेक महिंद्रा जैसी आईटी कंपनियों ने कर्मचारियों और उनके परिवारों को वापस घर लाने के लिए विशेष उड़ानें बुक कीं, जो महामारी और वीजा संबंधी मसलों के कारण विदेशों में फंसे हुए थे।
शुरू हुआ वर्क फ्रॉम होम कल्चर
रातोंरात छोटी और बड़ी लगभग सभी आईटी कंपनियों के साथ ही साथ सरकारी विभागों व अन्य क्षेत्रों ने भी कर्मचारियों के लिए घर से काम करने की व्यवस्था को लागू किया। इसकी शुरुआत हिचक के साथ जरूर हुई, लेकिन लॉकडाउन के चरम पर लगभग 98 प्रतिशत आईटी कर्मचारी घर से काम कर रहे थे। आंतरिक बैठकें, ग्राहकों के साथ बातचीत और टाउनहॉल सभी ऑनलाइन हो गए।
पढ़ाई से लेकर इलाज तक हुआ डिजिटल
स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने के कारण इन संस्थानों ने छात्रों की मदद के लिए प्रौद्योगिकी को अपनाया। इसी तरह अस्पतालों में बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण के मरीजों के भर्ती होने के कारण गैर-आपातकालीन बीमारियों के मरीजों को डिजिटल परामर्श दिया जा रहा है। इंफोसिस के सीईओ सलिल पारेख ने हाल में कहा था कि भविष्य का कार्यस्थल हाइब्रिड होगा और लचीलापन कर्मचारियों को अलग-अलग स्थानों से अलग-अलग समय पर काम करने की अनुमति देगा।
मुफ्त अनाज वितरण का बना रिकॉर्ड
देश के 80 करोड़ से अधिक गरीब लोगों को मुफ्त अनाज मुहैया कराना एक असाध्य काम था लेकिन खाद्य, सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कोविड-19 महामारी के कारण उठापटक वाले वर्ष 2020 में इस काम को बखूबी अंजाम दिया। लगातार आठ महीने तक राशन दुकानों के जरिये मुफ्त अनाज का वितरण किया गया। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्ना योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत, मंत्रालय ने अप्रैल-नवंबर की अवधि में लगभग 3.2 करोड़ टन मुफ्त खाद्यान्न का वितरण किया।
रबी फसलों की रिकॉर्ड खरीद
महामारी के बावजूद रबी सत्र में रिकॉर्ड 3.9 करोड़ टन गेहूं की खरीद की गई। चालू खरीफ सत्र में धान की खरीद पहले ही 20 प्रतिशत बढ़कर 4.5 करोड़ टन हो गई है। चीनी मिलें, गन्ना किसानों को समय पर भुगतान सुनिश्चित कर सकें इसके लिए सरकार ने वर्ष के अंतिम दिनों में 3,500 करोड़ रुपये की निर्यात सब्सिडी की घोषणा की। सरकार ने प्रवासी श्रमिकों को 3.
2 करोड़ टन गेहूं और चावल के वितरण के अलावा, इन प्रवासी मजदूरों को आठ लाख टन खाद्यान्न और 1.66 लाख टन दालों का वितरण किया।
2021 में सुधारों के लिए लागू होंगी श्रम संहिताएं
अगले साल एक अप्रैल से चार श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन से औद्योगिक संबंधों में सुधार की दिशा में एक नई शुरुआत होगी, जिससे अधिक निवेश जुटाने में मदद मिलेगी, हालांकि रोजगार सृजन का मुद्दा 2021 में भी एक महत्वपूर्ण चुनौती बना रहेगा। कोविड-19 महामारी के चलते ये साल कार्यबल के साथ ही नियोक्ताओं के लिए भी चुनौतीपूर्ण रहा है। सरकार ने 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया, जिसका आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ा और इसके चलते बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों को अपने मूल स्थान की ओर पलायन करना पड़ा। कई प्रवासी मजदूरों ने अपनी नौकरी खो दी और उन्हें अपने मूल स्थानों से काम पर वापस लौटने में महीनों लग गए।
क्या पूरा होगा विनिवेश लक्ष्य?
कोविड-19 महामारी की वजह से बीपीसीएल और एयर इंडिया की विनिवेश प्रक्रिया को बेशक कुछ पीछे धकेलना पड़ा हो लेकिन इस मामले में कदम वापस खींचने की सरकार की कोई मंशा नहीं है क्योंकि सरकार का मानना है कि किसी भी तरह के व्यवसाय में रहना उसका काम नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र के बेशकीमती उपक्रमों को बेचने का काम पिछले साल के अंत में शुरू हुआ था और 2020 को माना जा रहा था कि यह भारत के निजीकरण के इतिहास में एक अहम वर्ष होगा। वर्ष के दौरान तीन प्रमुख उपक्रमों का निजीकरण किया जाना है। देश की दूसरी सबसे बड़ी पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री करने वाली भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), विमानन सेवाएं देने वाली देश की जानी मानी कंपनी एयर इंडिया और जहाजरानी क्षेत्र में काम करने वाली शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एससीआई) को रणनीतिक बिक्री के लिए पेश किया गया। लेकिन कोरोना वायरस महामारी ने इन उपक्रमों के विनिवेश की समयसीमा को आगे धकेल दिया। इसके बावजूद सरकार विनिवेश प्रक्रिया को लेकर मजबूती बनाए हुए है।
वित्त वर्ष 2020-21 के लिए 2.10 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य तय किया। लेकिन अब तक इस साल में विभिन्न उपक्रमों में आंशिक हिस्सेदरी की बिक्री के जरिये मात्र 12,380 करोड़ रुपये ही जुटाये जा सके हैं। चालू वित्त वर्ष के लिए तय विनिवेश लक्ष्य हासिल करना भी पिछले वित्त वर्ष की तरह असंभव जान पड़ता है। क्योंकि इस साल का लक्ष्य पिछले साल जुटाये गए 50,298 करोड़ रुपये के मुकाबले चार गुना ऊंचा है।