नई दिल्ली। सार्वजनिक बैंकों की नॉन परफॉर्मिंग असेट (NPA) के अस्वीकार्य स्तर पर पहुंचने पर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सोमवार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रमुखों के साथ इस मुद्दे पर विचार किया और कहा कि जानबूझकर बैंक का कर्ज न चुकाने वालों (विलफुल डिफॉल्टर्स) से निपटने के लिए बैंकों के पास पूरा अधिकार और स्वायत्तता है। बैंकों की दूसरी तिमाही समीक्षा के दौरान जेटली ने भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य और अन्य सरकारी बैंकों के प्रमुखों तथा रिजर्व बैंक के अधिकारियों के साथ एनपीए मुद्दे पर गहन विचार विमर्श किया। बैठक में इस्पात सहित अन्य क्षेत्रों के एनपीए, क्रेडिट ग्रोथ, बैंकों की वित्तीय सेहत और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की स्थिति पर चर्चा की।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का ग्रॉस नॉन परफॉर्मिंग असेट (एनपीए) जून तिमाही में बढ़कर 6.03 फीसदी हो गया है, जो कि मार्च तिमाही में 5.20 फीसदी था। बैठक में विभिन्न विभागों के सचिवों ने प्रोजेक्ट्स के लिए आवश्यक राशि के लिए प्रजेंटेशन भी दिए। जेटली ने कहा कि जब हम कुछ निश्चित सेक्टर की समीक्षा करते हैं, जिनमें एनपीए बहुत अधिक है, तो हमें कुछ डिफॉल्टर्स के नाम पता चलते हैं, जिनके नाम अधिकांश बैंकों की लिस्ट में हैं। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक बैंकों के पास सभी अधिकार और स्वयात्तता है कि वह विलफुल डिफॉल्टर्स से अच्छी तरह निपट सकें।
जेटली ने कहा कि रिजर्व बैंक ने डिफॉल्टर्स से निपटने के लिए बैंकों को सशक्त बनाया है और बैंकरप्सी कानून भी जल्द ही आने वाला है जो इस तरह की समस्या से निपटने में और अधिक मददगार होगा। वित्त मंत्री ने कहा कि यह सभी उन कदमों का हिस्सा हैं, जिनके तहत बैंकों को लगातार सशक्त किया जा रहा है, जिससे वे प्रभावी बैंकिंग को आगे बढ़ा सकें। जेटली ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सेहत एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। पीछे से चली आ रही समस्या कायम है और यह एनपीए के अस्वीकार्य स्तर से संबंधित है। उन्होंने कहा कि हमारी कुछ विशेष बैंकोंे से संबंधित चर्चा भी हुई। अर्थव्यवस्था की सेहत तथा विभिन्न क्षेत्र किस तरीके से काम कर रहे हैं। क्योंकि दबाव का एक हिस्सा कुछ चुनिंदा क्षेत्रों की वजह से भी है।