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बैड लोन और बढ़ते घाटे से और खस्‍ता हुई बैंकों की हालत, 25 फीसदी पूंजी पर मंडराया खतरा

बढ़ते बैड लोन और घटती प्रोफिटेबिलिटी के कारण देश के सरकारी बैंकों की हालत पिछले कुछ महीनों में और भी खस्‍ता हो गई है।

Abhishek Shrivastava
Updated : June 29, 2016 15:25 IST
RBI: बैड लोन और बढ़ते घाटे से और खस्‍ता हुई बैंकों की हालत, 25% पूंजी पर मंडराया खतरा
RBI: बैड लोन और बढ़ते घाटे से और खस्‍ता हुई बैंकों की हालत, 25% पूंजी पर मंडराया खतरा

नई दिल्‍ली। बढ़ते बैड लोन और घटती प्रोफिटेबिलिटी के कारण देश के सरकारी बैंकों की हालत पिछले कुछ महीनों में और भी खस्‍ता हो गई है। रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि बड़े पैमाने पर डिफॉल्ट होने पर बैंक बदहाल हो सकते हैं। रिपोर्ट की मानें तो डिफॉल्‍ट की हालत में बैंकों की एक चौथाई पूंजी स्‍वाहा हो सकती है। हालांकि, यह बात भी कही गई है कि अगर बड़ी संख्या में डिपॉजिट निकाले जाते हैं तो उससे पैदा होने वाले रिस्क का बैंक आसानी से सामना कर सकते हैं।

डूब सकती है 25 फीसदी पूंजी

आरबीआई ने छमाही फाइनैंशल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में कहा है कि अगर बड़े बॉरोअर्स डिफॉल्ट करते हैं तो भारतीय बैंकों की 25 पर्सेंट कैपिटल खत्म हो सकती है। स्ट्रेस्ड टेस्ट के इस रिजल्ट में अलग-अलग हालात की कल्पना की गई है। बैंकों के लिए ग्लोबल बैसल नॉर्म्स के मुताबिक ऐसे टेस्ट करना जरूरी है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बैंकिंग स्टेबिलिटी इंडिकेटर (बीएसआई) से पिछले 6 महीनों में बैंकिंग सेक्टर के बढ़े रिस्क का पता चलता है।’ रिपोर्ट के मुताबिक, ‘बीएसआई के ट्रेंड एनालिसिस से संकेत मिलता है कि 2010 के मध्य से बैंकिंग सेक्टर की जो स्टेबिलिटी कंडीशन खराब होनी शुरू हुई थी, वह अब काफी बिगड़ चुकी है। बैंकों के बैड लोन में बढ़ोतरी और उनकी कम प्रॉफिटेबिलिटी के चलते ऐसा हुआ है।

कंस्‍ट्रक्‍शन और स्‍टील सेक्‍टर ने की हालत पतली

पिछले कुछ वर्षों में स्टील, रोड बनाने वाली कंपनियों के डिफॉल्ट करने के चलते बैंकों की हालत काफी खराब हुई है। वहीं, रिजर्व बैंक ने पिछले साल से बैड लोन दिखाने के लिए सख्त रूल्स लागू किए थे, जो उसके एसेट क्वॉलिटी रिव्यू प्रोग्राम का हिस्सा है। इसके बाद से बैंकों के नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स में काफी बढ़ोतरी हुई है। आरबीआई का कहना है कि इस साल मार्च तक ग्रॉस बैड लोन कुल कर्ज का 7.6 पर्सेंट था, जो एक्सट्रीम स्ट्रेस की स्थिति में अगले साल मार्च तक 9.3 पर्सेंट हो सकता है। सरकारी बैंकों के लिए यह आंकड़ा 9.6 पर्सेंट से बढ़कर 11 पर्सेंट तक जा सकता है।

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