नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के साथ बढ़ते टकराव की खबरों के बीच वित्त मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि सरकार केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता का सम्मान करती है और इसकी रक्षा करती है। मंत्रालय ने कहा कि कई मुद्दों पर केंद्रीय बैंक के साथ गहन विचार-विमर्श चल रहा है।
वित्त मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि आरबीआई अधिनियम के तहत केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता सरकार के लिए आवश्यक एवं स्वीकार्य जरूरत है। भारत सरकार इसकी रक्षा और सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध है। मंत्रालय ने कहा कि सरकार और आरबीआई दोनों को अपनी कार्यप्रणाली में सार्वजनिक हित और देश की अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुसार निर्देशित होना होता है।
इस उद्देश्य के लिए समय-समय पर सरकार और आरबीआई के बीच विभिन्न मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श होता रहता है। हालांकि बयान में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि सरकार ने केंद्रीय बैंक के साथ अपने मतभेदों का समाधान करने के लिए आरबीआई गवर्नर को पहले कभी इस्तेमाल न की गईं शक्तियों के अधीन निर्देश जारी किए हैं।
सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट की धारा 7(1) के तहत विभिन्न मुद्दों पर कम से कम तीन पत्र भेजे हैं। यह धारा सरकार को सार्वजनिक हितों के मुद्दों पर केंद्रीय बैंक के गवर्नर को निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करती है। बयान में कहा गया है कि भारत सरकार ने कभी उन परामर्शों को सार्वजनिक नहीं किया है। केवल लिए गए अंतिम निर्णय को ही सार्वजनिक किया जाता है।
मंत्रालय ने कहा कि सरकार इस परामर्श के जरिये स्थिति के बारे में अपना आकलन सामने रखती है और संभावित समाधानों का सुझाव देती है। सरकार ऐसा करना जारी रखेगी।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने रिजर्व बैंक के साथ कुछ मुद्दे पर असहमति को लेकर आज तक कभी भी इस्तेमाल नहीं किए गए अधिकार का जिक्र किया था। सरकार त्वरित सुधारात्मक कदम (पीसीए) की रूपरेखा से लेकर तरलता प्रबंधन तक के मुद्दों पर रिजर्व बैंक से असहमत है।
पूर्व वित्त मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी. चिदंबरम ने जारी विवाद को लेकर ट्वीट में कहा कि यदि सरकार ने रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा सात का इस्तेमाल किया तो आने वाले समय में और भी बुरी खबरें सामने आएंगी। उन्होंने कहा कि पूवर्वर्ती सरकारों ने 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण, 1997 के एशियाई वित्तीय संकट और 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के समय भी इसका इस्तेमाल नहीं किया था। उन्होंने कहा कि यदि धारा सात के इस्तेमाल की खबरें सही हैं तो इससे यह पता चलता है कि मौजूदा सरकार अर्थव्यवस्था से जुड़े तथ्यों को छुपाना चाहती है।