नई दिल्ली। वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम ने केंंद्र सरकार को सुझाव दिया है कि वह राज्यों द्वारा रेजिडेंशियलऔर कॉमर्शियल प्रॉपर्टी पर लिए जाने वाले स्टांप शुल्क में भारी कमी लाए। एसोचैम ने कहाकि यदि राज्य सरकारें संपत्ति की खरीद-फरोख्त पर स्टांप शुल्क कम करतीं हैं तो इसका रेजिडेंशियल और कॉमर्शियल प्रॉपर्टी के खरीदारों को काफी लाभ मिलेगा। साथ ही इस क्षेत्र को Black Money मुक्त करने में भी मदद मिलेगी।
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रियल एस्टेट की खरीद-बिक्री में 30-40 फीसदी नकद लेन-देन
- एसोचैम ने कहा है कि प्रॉपर्टी की खरीद फरोख्त में संपत्ति के कुल मूल्य का 30 से 40 प्रतिशत लेन-देन नकद में होता है।
- इसकी सबसे बड़ी वजह स्टांप शुल्क की दर अधिक होना है।
- एक से डेढ़़ करोड़ रुपए का फ्लैट लेने पर यदि 6-7 प्रतिशत की दर से भी स्टांप शुल्क आपको देना है तो रजिस्ट्री, वकील और दूसरे सरकारी शुल्कों सहित यह राशि 10 लाख रुपए के आसपास बैठती है।
- एसोचैम ने कहा है, प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन प्राइस ही विक्रेता के कैपिटल गेन टैक्स भी तय करता है।
- विक्रेता को कैपिटल गेन टैक्स और स्टांप शुल्क दोनों के ही मामले में इससे काफी फायदा मिलता है कि वह रजिस्ट्री की कीमत को वास्तविक सौदे के मूल्य से कम से कम दिखाये।
- उद्योग मंडल ने कहा है कि ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं जहां लोगों को जो कि साफ सुथरा जीवन जी रहे हैं।
- आयकर रिटर्न भर रहे हैं, उन्हें भी ऐसे सौदों में अपने खाते से नकदी निकालकर लेन-देन करना पड़ता है।
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एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने कहा
कुल मिलाकर प्रणाली कई बार आपको स्वच्छ पैसे को Black Money में परिवर्तित करने के लिए मजबूर करती है। कोई इसे पसंद नहीं करता है लेकिन राज्यों को चाहिए कि वह आगे आएं और स्टांप शुल्क को कम से कम 50 प्रतिशत कम करें। ऐसा करने से उनके राजस्व में वृद्धि होगी और Black Money कम होगा।